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________________ 98 ।। विचित्रा मनसो गतिः ।। Jain Education International विचित्रता HAPPINESS मन का एक विचित्र नियम है जो जितना दूर है वह उतना सुहावना लगता है और जो पास है उसकी यह मन उपेक्षा करता है। जैसे जो चीज आँख के एकदम नजदीक हो वह दिखाई नहीं देती और जो दूर है वहाँ आँखें फौरन देख लेती है। मन की इस अजीब विचित्रता के कारण आज सम्बन्धों के पुल कमजोर हो गए हैं। जीवन से माधुर्यता का संगीत समाप्त हो रहा है। घर में सुई पटक सन्नाटा छा जाने से घर मकान बन गया है। यह मन अपने दोस्त को खुश करने के लिए तो तड़पता है किन्तु भाई की उदासी का उसे ख्याल नहीं है। दूर से आई हुई मौसी के साथ मन दो-दो घंटे बात करने के लिए बैठ जात है किन्तु अपनी माँ के साथ बात करने के लिए उसे दो मिनट भी नहीं मिलते। स्पष्ट है कि दूर रहे हुए का आकर्षण, प्रेम, खिंचाव तथा निकटवर्ती की उपेक्षा करना यह मन का स्वभाव बन गया है। इस मन के स्वभाव को बदलने के लिए एक सत्य को सतत नज़र के सामने रखना जो अपने नजदीक में रहने वालों को सुखी कर सकता है या उन्हें सम्मान देकर उनकी अनुकूलताओं का ख्याल रखता है तो दूर रहे हुए सुख भी उसके नजदीक आ जाते हैं और जो अपने नजदीक में रहने वालों को दुःखी करता है और उनकी हरदम उपेक्षा करता है तो दूर रहे हुए दुःख भी उसके नजदीक आ जाते हैं। For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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