SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणानुराग (म्युझिक ) अपने मधुर स्वर संगीत से हजारों को मंत्रमुग्ध कर देना सरल है परन्तु दूसरों का सुर-आलाप सुनने के बाद "वाह वाह' कहकर आनंद लेना कठिन है। अपने ओजस्वी भाषणों से धूम मचा देना आसान है परन्तु दूसरों के वक्तव्य को सुनकर उसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा करना बहुत मुश्किल है। स्पष्ट है कि गुणी बनना सरल है परन्तु गुणानुरागी बनना दूसरों के गुणों को कहना बड़ा कठिन है । गुणानुराग गुणों का उत्कर्ष है । यदि गुणों को मन्दिर के प्रवेश द्वार की उपमा दी जाए तो गुणानुराग मन्दिर पर चमकने वाला स्वर्णकलश है। धनी बनने की तीव्र रूचि से मेहनत करने पर कोई धनवान बने ही यह कोई जरूरी नहीं है किन्तु गुणी बनने की अल्प रूचि भी व्यक्ति को गुणी बनाने में समर्थ है। चाणक्य नीति में लिखा है एक गुण भी समस्त दोषों को ढक देता है। जैसे एक बालक गुल्लक में प्रतिदिन एक-एक पैसा डालकर गुल्लक को भरता है वैसे ही एक-एक गुण को इकट्ठा करते जाइए। भगवान महावीर ने कहा है जब तक शरीर में प्राण है तब तक गुणों को ही चाहो, गुणों को ही देखो और गुणों को ही धारण करो ताकि कोई भी व्यक्ति दुर्जन न दिखाई दे, किसी भी वस्तु का दुरूपयोग न हो तथा कोई भी परिस्थिति तनाव न बनें । 6 Jain Education International for the Only sona For Farivate & Fersonal Use {{ गुणानुरागी गुणमूल एषः || 97 www.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy