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अच्छाई
(वृक्ष) {{ उस के घर रोज दिवाली {{
The tree of love
सफल वह नहीं है जिसने असीम दौलत का संचय किया, सफल वह है जिसने लोगों की मदद करके दुआओं की दौलत से मन का खजाना भर लिया। आप जहाँ पर भी हैं वहाँ आपसे जितना बन सके उतना अच्छा काम करने का संकल्प करें। चाहे संसार में भ्रष्टाचार, स्वार्थ और कामनाओं का कितना ही अंधकार क्यों न हो यदि सत्कर्म का एक दीपक जलाया जाए तो हर समस्या का
आंशिक समाधान हो सकेगा। यदि प्रत्येक व्यक्ति सत्कर्म का दीप जलाए तो सब मिलकर एक दीपमाला बनेगी। दीपक स्वयं जलकर भी दूसरों को रोशनी देता है। ऐसी उदारता की देयवृत्ति हो तो प्रत्येक अमावस दिवाली है। इस संसार में फूल अपने लिए नहीं खिलते और न ही फल अपने लिए मीठे होते हैं। पेड़ स्वयं भी गर्मी सह लेता है लेकिन अपनी छाया द्वारा औरों को गर्मी से बचाता है। भलाई जितनी अधिक की जाती है उतनी ही अधिक मिलती है। जो दूसरों की भलाई करता है, वह अपनी भलाई स्वयं कर लेता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही अच्छा ईनाम है।
अतः अच्छाई के बीज बोते जाना चाहिए | पता नहीं कब ये बीज समय के साथ वृक्ष बनकर तंडी छाया दें।
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