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कितनी सुन्दर शपथ !
{{न संरोहति वाक्क्षतम्
एक औरत प्रतिदिन एक स्थानीय किसान से दूधदही लिया करती थी। वह किसान बढ़िया दूध-दही के साथ-साथ उनके शीघ्र वितरण के लिए भी प्रसिद्ध था। एक दिन उस औरत के घर कोई आयोजन था। काफी मेहमान आने वाले थे। लेकिन उसी दिन किसान नहीं आया। उस औरत को बहुत क्रोध आया कि इतने - महत्त्वपूर्ण दिन किसान ने उसके साथ ऐसा धोखा किया।
अगले रोज किसान दूध लेकर आया तो उसने काफी भला – बुरा कहा। जब उसके क्रोध पूर्ण शब्द समाप्त हुए तो किसान ने धीरे से कहा, "आपको जो असुविधा हुई उसके लिए क्षमा चाहता हूँ, परन्तु उस दिन मेरी माता जी का देहान्त हो गया था और मुझे उनका दाह-संस्कार करना था।'' अपने तीखे व क्रूर शब्दों पर शर्मिन्दा होते हुए उस औरत ने फिर किसी के साथ कदापि वैसे तीखे शब्दों में न बोलने की शपथ ली। उसने महसूस किया कि हम अक्सर नहीं जानते कि दूसरे व्यक्ति की क्या और कैसी परिस्थिति हो सकती है।
जीवन में हमें प्रतिदिन बेहतर जिन्दगी जीने के लिए प्यार के इस नियम पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अन्यथा सत्तर या सौ साल के इस जीवन का कोई महत्व नहीं है। महत्त्व इसका है कि उनमें से कितने दिन आपने प्यारा बाँटा, कितने लोगों के प्रति मन उदार रखा।
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