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एक बार फारस देश में पक्षियों ने बहुत उत्पात मचाया। वे खेतों खलिहानों पर झुंड के झुंड टूट पड़ते। फसल नष्ट - सी हो गई। खलिहानों में अनाज गायब होने आया। वहाँ के निवासियों ने सोचा अब ये पक्षी देश भर में अकाल की स्थिति पैदा कर देंगे। प्र इन्हें रोका जाए तो कैसे ?
आखिरकार वे अपना दुखड़ा लेकर वहाँ के राजा के पास पहुँचे। राजा ने तुरन्त विचार किया और ऐलान कर दिया "पक्षियों पर दया न की जाए। उन्हें जान से मार दिया जाए। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।'' देशभर में पक्षियों को मार डालने का भयंकर अभियान शुरु हो गया। क्योंकि राजा ने यह भी घोषित किया था कि जो कोई पक्षियों को मारेगा उसे इनाम दिया जाएगा। धीरे-धीरे राज्य के सारे पक्षी समाप्त हो गए। लोगों ने र राहत की सांस ली और देशभर में उत्सव मनाया गया।
एक वर्ष बीत गया। किसानों ने फसल की तैयारी की खेतों में बीज बोया, लेकिन आश्चर्य एक दाना भी नहीं उगा। दाने जमीन में ही नष्ट हो गए। जमीन में कीड़े थे। वे दानों को खा गए। बात यह थी कि हर साल पक्षी उन मिट्टी के कीडों को, असंख्य कीटाणुओं को, खा जाते थे परन्तु इस वर्ष पक्षी थे ही नहीं ! फसल पैदा न होने से राज्य में अकाल पड़ गया, त्राहि-त्राहि मच गई। लोग अपनी नादानी पर पछताने लगे। राजा ने इस समस्या पर गंभीरता से विचार किया और हुक्म दिया - 'परिस्थिति का सामना किया जाए। दूसरे देशों से पक्षी मँगाए जाएँ।" लइस हुक्म का पालन किया गया। पक्षी लाए गए और माहौल बदल गया। लोगों की समझ में आ गया - जीव एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। यह सृष्टि का, प्रकृति का चक्र है।
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