________________ महायोगी आनंदघन (लगभग 1604-1674 ई.स.)ने पदों और स्तवनों की रचना की है / उनके स्तवनों में जैन धर्म का गहन सिद्धांत बोध और योगानुभव अभिव्यक्त है, जबकि पदों में धर्म संवेदनाओं का कवित्वमय उछाल, भावोन्मुख वाणी और बिजली की तरह अंतःस्फूर्त, उल्लास से भरपूर अनुभूति मिलती है / आनंदघन का ज्ञान स्वसंवेद्य ज्ञान है / निजानंद में रहने वाला ऐसा मस्त कवि किसी का अनुगामी नहीं होता परन्तु योग, वैराग्य और अध्यात्म से अपनी एक नवीन परम्परा का सर्जन करता है। वे इन स्तवनों में अध्यात्म मार्ग में आनेवाली समस्याओं को प्रस्तुत करते हैं / जैन दर्शन में उनकी श्रद्धा दृढ रूप से निहित प्रतीत होती है / उस दर्शन का ही वे चित्रण करते हैं / इसलिए योग हो या अध्यात्म, वैराग्य हो या दर्शन प्रत्येक विषय में उनके तत्त्वविचार उच्च कोटि के प्रतीत होते हैं / योगमय अनुभवपूर्ण विचार, नैसर्गिक लाघवयुक्त वाणी और तत्त्वविचारों के कारण आनंदघन के ये स्तवन जैन परम्परा में अलग पहचान बनाते हैं और इस प्रकार के साहित्य में उच्च स्थान पर विराजित होते है / प्रस्तुत विनिबंध गुजराती साहित्य के विद्वान लेखक, गुजरात विश्वविद्यालय के कला संकाय के पूर्व डीन और जैन दर्शन के विशषज्ञ कुमारपाल देसाई द्वारा लिखा गया है / देसाई के अनेक ग्रंथ गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित हुए हैं / साहित्य, शिक्षण, पत्रकारत्व, धर्मदर्शन, समाजसेवा, खेल-कूद इत्यादि के क्षेत्र में उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है / भारत सरकार ने उन्हे पद्मश्री से अलंकृत किया है / ANANDGHAN (Hindi), Rs.25-00 ISBN 81-260-2234-5 24 भाषाओं मैं पुस्तकें प्रकाशित करनेवाली साहित्य अकादेमी विश्व की सबसे बड़ी प्रकाशन संस्था website : http://www.sahitya-akademi.gov.in Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org