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16 : आनंदघन पाण्डुलिपियों में मिलने वाले की पदों की संख्या भिन्न-भिन्न है, परन्तु इन पदों में अन्य कवियों के पद और किसी अज्ञात कवि द्वारा आनंदघन के नाम मढ़ दिये गये पद भी बहुत मिलते हैं । जैसे कि आनंदघनजी के नाम से अत्यन्त प्रसिद्ध हुए “अब हम अमर भये न मरेंगें" यह पद आगरा निवासी धानतराय का माना जाता है । 'तुम ज्ञानविभो फूली बसंत' यह पद भी द्यानतराय का है, ऐसा माना जाता है । लेकिन द्यानतराय आनंदघनजी के बाद में हुए हैं इसीलिए पुरोनी पाण्डुलिपियों पर जब तक शोध न हो तब तक इसे प्रमाणभूत नहीं मान सकते । दूसरे मध्यकालीन कवियों की तरह आनंदघन के पदों में अन्य कवियों की रचनाओं का मिश्रण हुआ है । वास्तव में, उस जमाने में सभी लोकप्रिय कवियों की रचनाओं के साथ ऐसा हुआ है । आनंदघन रचित स्तवनों में ऐसा नहीं हुआ । उनके स्तवनों की अपेक्षा पदों में कवित्वशक्ति, रसिकता और दृष्टि की व्यापकता अधिक मात्रा में देखने मिलती है ।
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टिप्पण 'श्री आनंदघन पदसंग्रह', रचयिता : आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी, ई. स. 1954, पृ, 122 मुनिश्री जिनविजयजी की ता. 15-9-1968 के दिन प्रत्यक्ष मुलाकात के आधार पर 'महान संत आनंदघनजी और उनकी रचनाओं पर विचार', लेखक श्री अगरचन्दजी नाहटा, अंक 'वीरवाणी', 2/3 'श्री आनंदघनजीनां पदो', ले. मोतीचंद कापड़िया, ई. स. 1956, पृ. 60-61 'श्री महावीर जैन विद्यालय रजत स्मारक ग्रंथ', लेख : 'अध्यात्मी श्री आनंदघन अने श्री यशोविजय', लेखक : मोहनलाल दलीचंद देसाई, पृ. 201 'आनंदघन ग्रंथावली', सम्पादक : उमरावचंद जरगड, महताबचंद खारैड, जयपुर, 3, 1975, पद 99
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