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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
द्वितीय परिच्छेद... [47]
जैन इतिहास के अनुसार यह कोश साहित्य जैनों के बारहवें दृष्टिवाद अंगसूत्र के अन्तर्गत आये सत्प्रवाद पूर्व एवं विद्यानुवाद के 500 महाविद्याओं में अक्षरविद्या के रुप में माना गया है।25
संस्कृत साहित्य की रचनाओं में विकीर्ण रुप से यत्र तत्र निर्दिष्ट अनेक कोश ग्रंथों के नाम उपलब्ध होते हैं। यथा भागुरीकृत त्रिकाण्ड कोश, वाचस्पतिकृत शब्दार्णव, विक्रमादित्य कृत 'संसारावर्त', वररुचिकृत 'नाममाला', व्याडिकृत 'उत्पलिनी कोश' । इसी प्रकार आचार्य आपिशलि और शाकटयन ने भी कोश ग्रंथों की रचना की थी।26 इसके अतिरिक्त और भी कोश हो सकते हैं जो कि वर्तमान में उपलब्ध सभी कोशों के पूर्व रचे गये थे। किन्तु उपलब्ध कोशों में प्रथम कोश के रचयिता -अमर सिंह को माना जाता हैं। प्रथम कोशकार : अमरसिंहः
श्री नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार यह अमरसिंह बौद्ध धर्मावलम्बी थे। कुछ विद्वान इन्हें जैन भी मानते हैं । 27 विख्यात संस्कृत अमरकोश जैन कवि अमरसिंहजी द्वारा निर्मित है। कुछ प्रमाणों के अनुसार ये धनंजय के साले थे, (अमरसिंह को यदि भक्तामर स्त्रोत रचयिता आचार्य मानतुङ्गसूरि के गृहस्थ-शिष्य महाकवि धनंजय का साला माना जाये तो अमरसिंह का समय विक्रम की 7 वीं शती माना जायेगा।) प्रचलित अमरकोश में से जैन प्रमाण विषयक कई श्लोकों को हटा दिया गया है और मंगलाचरण के शांतिनाथ-वंदना के श्लोक भी हटा दिये गये हैं। अमरकोश:
___ पण्डित अमरसिंह रचित यह संस्कृत कोश अमरकोश के नाम से प्रसिद्ध है, इसका दूसरा नाम 'नामलिङ्गानुशासन' है। यह कोश पर्यायकोश के रुप में लिखा गया है। संस्कृत जगत में यह
कोश सभी जनों में प्रसिद्ध है। इसकी उपयोगिता इसी से सिद्ध हो जाती है कि इसकी अब तक लगभग 50 टीकाएँ हो चुकी है।28 अन्य कोश परम्परा:
अमरसिंह के इस कोश के बाद पं. शाश्वतरचित 'अनेकार्थसमुच्चय' हर्षवर्धनरचित 'लिङ्गानुशासन'; पुरुषोत्तमदेवरचित "त्रिकाण्डशेषकोश', 'हारावली', 'वर्णमाला एकाक्षर कोश' और द्विरुप कोश; वामनकृत 'लिङ्गानुशासन' और ऐसे ही अनेक और भी कोश सातवीं शती में लिखे गये । दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी में हलायुध का 'अभिधानरत्नमाला' यादव प्रकाश का 'वैजयंती' और भोजराज का 'नाममालिका' नामक कोश प्रसिद्धि को प्राप्त हुए। बारहवीं शताब्दी में कलिकालसर्वज्ञ जैनाचार्य हेमचन्द्रसूरिने 'अभिधानचिंतामणिनाममाला', निघण्टुशेष और एक विशाल अनेकार्थ संग्रह कोश की रचना की। इसके अतिरिक्त प्राकृत भाषा के कोश ग्रंथो में अभिवृद्धि करते हुए उन्होंने 'देशी नाममाला' की रचना की 12 इसमें एसे शब्दों का संग्रह किया गया है जिनका अर्थ प्रसिद्धि के आधार पर ही समझा जा सकता है।
24. जैन आगम साहित्य: एक अनुशीलन पृ. 29, 31, 35 25. श्रीमद् जयन्तसेन सूरि अभिनंदन ग्रंथ-विश्लेषण पृ. 31 26. श्रीमद् जयन्तसेन सूरि अभिनंदन ग्रंथ-विश्लेषण पृ. 29 27. अभिधान चिंतामणि नाममाला, प्रस्तावना पृ. 9 28. देखिये अमरकोश, प्रस्तावना 29. श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनंदन ग्रंथः विश्लेषण, पृ 30 -डॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी 30. वही 31. शासनप्रभावक श्रमण भगवन्तो, भाग 1 में कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य
का जीवनवृत्त ___32. वही
जय जय नाणदिवायर! परोवयारिकपच्चल । मुणिंद ! गुस्करुणारससायर!, नमो नमो तुज्झ पायाणं ॥
दारिद्दअमुद्दसमुद्दमज्झनिवडंतजंतुपोयाणं । गुस्करुणारससायर ! नमो नमो तुज्झ पायाणं ॥2॥
सग्गापवग्गमग्गा-णुलग्गजणसत्थवाहपायाणं । गुस्करुणारससायर ! नमो नमो तुज्झ पायाणं ॥3॥ चक्कंकुसझसवरकल-सकुलिसकमलाइलक्खणजुयाणं । गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुज्झ पायाणं ॥4॥
अ.रा.पृ. 7/200
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