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[22]... प्रथम पारच्छद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन महावीर स्वामी की नूतन प्रतिमा वि.सं. 1959 में वैशाख सुदि पूर्णिमा, जालोर जिले में भांडवा गाँव के परिसर में स्थित है। यहाँ वर्तमान गुरुवार के दिन प्रतिष्ठा की एवं प्राचीन प्रतिमा लेप करवाकर नूतन में जैनेतरों के 200 घर समृद्ध हैं । जालोर (जाबालीपुर) के राजा परमार चोकी में विराजमान की।112
भाण्डुसिंह ने इसे अपने नाम से बसाया था। विक्रम की 7वीं शती 2. श्री आदिनाथ मंदिर :
तक यहाँ जैन श्वेताम्बर परिवारों से समृद्ध 'बेसाला' नामक कस्बा यह मंदिर निकटतवर्ती धोलागिरि की ढालू उपत्यका पर (तहसील) था जिसे मेमन लुटेरों ने ध्वस्त किया एवं जिन मंदिर स्थित हैं। इसे विक्रम की 13 वीं शती में नाहड महामंत्रीने बनवाया को भी तोड दिया किन्तु श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा किसी तरह था। उनके द्वारा निर्मित प्रतिमा खंडित हो जाने से देवसूरगच्छीय बचा ली गयी। श्री शांतिसूरि ने वि.सं. 1903 में मूलनायक की नवीन प्रतिमा प्रतिष्ठित
कोमता गाँव के संघवी पालजी विक्रम की 13 वीं शती की थी। वर्तमान में मूलनायक के रुप में वही प्रतिमा है एवं आसपास
में संयोगवश श्री महावीर प्रतिमा को एक शकट (ढकी हुई बैलगाडी) की दोनों प्रतिमाएँ श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठित नूतन
में बिराजमान कर इसे कोमता ले जा रहे थे तब इसी स्थान बिंब हैं।113
पर आकर बैलगाडी रुक गयी। अनेक प्रयत्न किये पर बैलगाडी 3. श्री पार्श्वनाथ मंदिर :
नहीं चली एवं अर्धरात्रि में अधिष्ठायक देव के द्वारा मिले आदेशानुसार
उन्होंने वहीं जिन मंदिर बनवाकर वि.सं. 1233 माघ सुदि पंचमी गाँव के मध्य में स्थित इस मंदिर के निर्माता एवं निर्माण
के दिन महामहोत्सवपूर्वक प्रतिमाजी विराजमान की। आज भी का समय अज्ञात हैं। मंदिर के एक स्तंभ के शिलालेख के "ॐ
प्रतिवर्ष प्रतिष्ठा के दिन पालजी संघवी के वंशज ही आकर मंदिर ना....ढा" लेखाक्षर से इसे मंत्री नाहड के पुत्र ढाकलजीने बनवाया
पर ध्वजा चढाते हैं। हो, एसा अनुमान है। पहले 17 वीं शती में कोरटा के किसी
इसके पहले इस मूलनायक श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा श्रावक ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। उसमें बिराजित मूलनायक किसने, कब, कहाँ भरवाई और कहाँ, किसने प्रतिष्ठित की थी, श्री शांतिनाथ भगवान् की प्रतिमा खंडित हो जाने से श्री पार्श्वनाथ वह अज्ञात हैं। बाद में वि.सं. 1359 में और वि.सं. 1654 में एवं उनके आसपास की नूतन प्रतिमाएँ आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र दियावट पट्टी के जैन श्वे. श्री सङ्घ ने दो बार इस मंदिर का जीर्णोद्धार सूरीश्वरजीने प्रतिष्ठित की।14।
करवाया था। 4. श्री केशरियानाथ मंदिर :
इसके बाद वि.सं. 1955 में आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वर वि.सं 1911 ज्येष्ठ सुदि अष्टमी के दिन उपरोक्त श्री महावीरमंदिर जी विहार करते इधर आये तब समीपवर्ती गाँवों के निवासी श्रीसंघ के कोट का निर्माण कार्य करवाते समय बाई ओर की जमीन के
ने यहाँ जैनों के घर नहीं होने से उक्त प्रतिमाजी को यहाँ से नहीं एक टेकरे को तोडते समय श्वेतवर्णी 5 फीट की विशालकाय श्री
उठाने एवं मंदिर का जीर्णोद्धार करने हेतु सारी दियावट-पट्टी में भ्रमण आदिनाथ भगवान् की पद्मासनस्थ और 5-5 फीट की दो कायोत्सर्गस्थ
कर श्रीसंघ को उपदेश दिया।
स्वर्गवास के समय वि.सं. 1963 में राजगढ (म.प्र.) में (खडी) श्री संभवनाथ तथा श्री शांतिनाथ भगवान् की प्रतिमाएँ निकली
गुरुदेवश्री ने कोरटा, जालोर (स्वर्णगिरि), तालनपुर और मोहनखेडा थीं। जिन्हें बिराजमान करने हेतु श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने श्रीसंघ
के साथ इस तीर्थ का भी जीर्णोद्धार करवाने हेतु अपने सुयोग्य शिष्य को उपदेश देकर नया जिन मंदिर बनवाकर वि.सं. 1959 वैशाख
श्री यतीन्द्र सूरीश्वर जी (अभिधानराजेन्द्र कोश के संपादक - तत्कालीन सुदि पूर्णिमा के दिन 201 अन्य प्रतिमाओं की अंजनशलाका प्राणप्रतिष्ठा
22 वर्षीय मुनि यतीन्द्र विजयजी) को आदेश दिया था। तदनुसार पूर्वक विराजमान की।116 इस अंजन शलाका में प्रतिष्ठित श्री ऋषभदेव
वि.सं. 1988 से 2007 तक यह कार्य चला और वि.सं. 2010 में प्रभु की 32 मण (एक मण = 40 सेर) की सार्वधातुक, दिव्य, मनोहर
जेठ सुदि दशमी को यहाँ प्रतिष्ठोत्सव संपन्न हुआ। इस मंदिर में प्रतिमा हरजी (राज) में विराजमान हैं।117 इस एतिहासिक प्रतिष्ठोत्सव
बिराजमान परमात्मा की शेष सभी मूर्तियाँ गुरुदेव के द्वारा प्रतिष्ठित का शिलालेख इस प्रकार हैं
हैं।19 प्रतिष्ठा प्रशस्ति :
वर्तमान में आपके प्रशिष्यरत्न वर्तमानाचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेन वीरनिर्वाणसप्ततिवर्षात्पश्चात्पार्श्वनाथसंतानीयः
सूरीश्वरजी की प्रेरणा से निर्मित श्वेत संगमरमर के 36 खंभो पर खुले विद्याधरकुलजातो, विद्यया रत्नप्रभाचार्यः ।। कमल में बने चतुर्मुख मंदिर में गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी द्विधा कृतात्मा लग्ने, चैकस्मिन् कोरंट ओसियायां ।
की 41 इंच की चतुर्मुख प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं। वीरस्वामिप्रतिमामतिष्ठपदिति पप्रथेऽथ प्राचीनम् ॥2॥
112. श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ, 78 देवडा ठक्कुरविजयसिंहे, कोरंटस्थवीरजीर्णबिम्बम् । 113. वही उत्थाप्य राघशुक्ले निधिशरनवेन्दुके पूर्णिमा गुरौ ॥३॥
114. श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ, 79
115. वही सुस्थितवृषभलग्ने, तस्य सौधर्मबृहत्तपोगच्छीयः ।
116. धरती के फूल पृ. 215, 241 श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिः प्रतिष्ठांजनशलाके चक्रे 4118 117. वही पृ. 218 3. भाण्डवपुर/ भाण्डवा :
118. श्री कोरंटपुरमंडन श्रीमहावीरजिनालयस्य प्रतिष्ठाप्रशस्तिः; श्रीमद्विजय
राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ, 79, 80 बालू रेती के टीलों से घिरा हुआ यह तीर्थ राजस्थान के
119. श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ, 81, 82
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