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________________ [10]... परिशिष्ट अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 7. ऋद्धिसंपन्न और ऋद्धिरहित दोनों प्रकार के श्रावकों को सामायिक दंडकोच्चार के बाद इरियावही करने का शास्त्रों का आदेश है। क्योंकि इसके लिये तिविहेण साहुणो नमिऊण सामाइयं करेइ करेमि भंते एवमाइ उच्चरिऊण ईरियाविहयाए पडिक्कमइ । -इत्यादि आगम-टीका-ग्रन्थों का वचन प्रमाण है। अतएव प्रथम त्रियोग से गुस्वंदन करके सामायिक उच्चार के बाद ईरियावही प्रतिक्रमण करना चाहिए 8. इस नियम में साधु-साध्वी के आहार, विहार, वस्त्र, उपधि एवं अन्य साध्वाचार के विधि-निषेधोंका वर्णन 9. श्री जिनेश्वरों की प्रतिमा और उनकी पूजनविधि मूल सूत्रों व उनकी टीका, भाष्य, नियुक्ति, चूर्णी-टब्बाओं में कई स्थानों पर प्रतिपादित है। इसलिए जिनप्रतिमा का तद्वत् भक्तिभाव सहित दर्शन-पूजन आदि करना आत्महितकर है। 7. (ओ) इड्ढिपत्तो सामाइयं करेइ, अणेण विहिणा करेमिभंते' सामाइयं सावज्जंजोगं पच्चक्खामि जावनियमं पज्जुवासामित्तिकाऊण पच्छा इरियं पडिक्कतो वंदित्ता पुच्छति पढति वा । - आवश्यक टीका (बी)वंदिऊण य छोभवंदणेण गुरुं, संदिसाविउण सामाइयमणुकड्डिय (जहा) करेमिभंते ! सामाइयं ( इत्यादि) तओइरिया पडिक्कमिय आगमणमालोएइ पच्छा जहाजेटुं साहुणो वंदिउण पढइ सुणइ वा। - श्रावक प्रतिक्रमण चूर्णि (सी)तिविहेण साहुणो नमिऊण सामाइयं करेमिभंते ! एवमाइ उच्चरिऊण तओइरियावहियाए पडिक्कमइ आलोएत्ता वंदित्ता आयरियाइ जहा रायणिए पुणरवि गुरुं वंदित्ता पडिलेहित्ता णिविट्ठो पढति पुच्छति वा । -पञ्चाशक चूर्णि 8. इस हेतु जिज्ञासु को श्री राजेन्द्रगुणमज्जरी दृष्टव्य है। 9. (क)विज्जाचारणस्सणं भंते ! तिरियं केवइए गइविसए पण्णत्ते ? गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं माणुसुत्तरे पव्वए समोसरणं करेइ, करेइत्ता तहिं चेइआई वंदइ, वंदित्ता वितिएणं उप्पाएणं नंदीसरवरे दीवे समसरणं करेइ, करेइत्ता तहिं चेइयाई वंदइ । वंदित्ता तओ पडि नियत्तइ, पडिनियत्तइत्ता इहमागच्छइ, आगच्छत्ता इहं चेइआई वंदइ । विज्जाचारणस्सणं भंते । उ8 केवइए गइविसए पण्णते ? गोयम ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं नंदणवणे समोसरणं करे । करेइत्ता तर्हि चेइयाई वंदइ, वंदित्ता वितिएणं उप्पारणं पंडगवणे समोसरणं करेइ, करेइत्ता तर्हि चेइयाई वंदइ । वंदित्ता तओ पडिनियत्तइ, पडिनियत्तइत्ता इहमागच्छइ, आगच्छइत्ता इहं चेइयाई वंदइ । -श्री भगवती सूत्र मूलपाठ, 20 वां शतक, 9 वाँ उद्देशा, 683-684 सूत्र । (ख)अंबडस्सणंणो कप्पइ अन्नउत्थियावा, अण्णउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थियपरिग्गहयाणि वा, चेइयाई वंदित्तए वा,णमंसित्तए वा, जाव पज्जुवासित्तए णण्णात्थ अरिहंते अरिहंत चेइयाणि वा । - श्री उववाइ-सूत्र-मूलपाठ पत्र 87 -अंबडाधिकार । (ग) नो चेवणं समणोवासगं पच्छाकडं बहुस्सुयं वज्जागमं पासेज्जा, जत्थेव सम्मं भावियाइं चेइयाइं पासेज्जा, कप्पड़ से तस्संतिए आलोइत्तए वा जाव पडिवज्जित्तए वा । -श्री व्यवहारसूत्र-मूल पाठ । उद्देशा । (घ) दोवइरायवरकन्ना जेणेव... -पडिनिक्खमइत्ता जेणेव जिणघरेतेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता जिणघरंअणुपविसइ ।अणुपविसित्ता जिणपडिमाणं आलोए पणामं करेड़, करेइत्ता लोमहत्थयं परामुसइ । एवं जहा सूरियाभो जिणपडिमाओ अच्चेइ तहेव भाणियव्वं । जाव धूवं डहई,धूवं डहित्ता वामं जाणुंअंचेइ, दाहिणं जाणु धरणितलंसि णिवेसेइ । णिवेसित्ता तिखुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि नमेइ ।नमेइत्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता करयल जाव कट्ट एवं वयासी नमुत्थुणं, अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं वंदइ नमसइ, नमंसित्ता जिणघराओ पडिनिक्खवमइ।" - श्री ज्ञातासूत्र मूलपाठ - 16 अध्ययन, 210 पत्र । (ड)तत्थणं बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया देवा चाउम्मासियपडिवएसुसंवच्छरिएसुवा अन्नेसुय बहुसुजिणजम्मण निक्खमण-नाणुष्पत्ति - परिनिव्वाणमाइसु देवकज्जेसु य देवसमुदएसु य देवसमितिसु य देवसमवाएसु य देवपओयणेसु य एगंतओ सहिता समुवगता समाणा पमुदियपक्कीलिया अट्टाहियास्वाओ महामहिमाओ करेमाणा पालेमाणा सहसहेण विहरति । - श्री जीवाभिगम सूत्र-मूलपाठ, 3 प्रतिपत्ति, 2 उद्देशा । (च) श्री संपति राजाने सवाक्रोड जिनबिंब एवं सवालाख जिनमंदिर बनवाये - श्री कल्पसूत्र बालवबोध-प्रथमावृत्ति पृ. 216 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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