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________________ [432]... षष्ठ परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन समयं गोयम! मा पमायए। एक क्षण के लिये भी प्रमाद मत करो। - अ.रा.पृ. 2/11, उत्तराध्ययन 10/34 सोही उज्जुय भूयस्स। सरल आत्मा की शुद्धि होती है। - अ.रा.पृ. 2/28 एवं 3/1053; उत्तराध्ययन 3/2 धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ। पवित्र हृदय में ही धर्म निवास करता है। - अ.रा.पृ. 228 एवं 3/1053; उत्तराध्ययन 3/2 आगम चक्खू साहू। साधु आगमचक्षु होता है (साधु के पास (आगम) तत्त्वज्ञान रुपी आंखें होती हैं)। - अ.रा.पृ. 2/90; प्रवचनसार - 3/34 आणाए मामगं धम्मम्। आज्ञा (पालन) ही मेरा धर्म है। - अ.रा.पृ. 2/131%; आचारांग 1/6/2/185 तित्थयर समो सूरी। आचार्य तीर्थंकर के समान होते हैं। - अ.रा.पृ. 2/135 एवं 4/2314, महानिशीथ सूत्र 5/101; गच्छाचार पयन्ना टीका 27 खणं जाणाहि। समय को पहचाने । (पदार्थ । द्रव्य । तत्त्व को पहचानो)। - अ.रा.पृ. 2/179; आचारांग-1/2/1/68 उत्ताणं जो जाणाति जो य लोगम् । जो आत्मा को जानता है, वही लोक को जानता है। - अ.रा.पृ. 2/180 एवं 3/559; सूत्रकृतांग-1/12/20 आततो बहिया पास। अपने समान ही दूसरों को देख। - अ.रा.पृ. 2/186, आचारांग-1/3/3/120 जे आता से विण्णाता, जे विण्णाता से आता। जो आत्मा है, वह विज्ञाता है। जो विज्ञाता है, वह आत्मा है। - अ.रा.पृ. 21223; आचारांग 1/5/5/171 अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो। अपनी आत्मा को सतत (पापों से) बचाकर रखो। - अ.रा.पृ. 21231; दशवैकालिक चूलिका-2/16 सारो परुवणाए चरणं तस्स विय होइ निव्वाणं । प्ररुपणा का सार-आचरण, आचरण से निश्चय ही निर्वाण (प्राप्त होता है)। - अ.रा.पृ. 2/372; आचारांग नियुक्ति-17 मित्ति मे सव्वभूएसु, वे मज्झ ण केणइ । समस्त प्राणियों के साथ मेरी मित्रता है। किसी से भी मेरा वेर-विरोध नहीं है। - अ.रा.पृ. 21432, एवं 5/317; महानिशीथ 1/59; वंदित्तुसूत्र 49 ज्वरादौ लङ्घनं हितम्। ज्वरादि में उपवास हितकारी है। - अ.रा.भाग 2 पृ. 548; चरक संहिता : ज्वर प्रकरण । जेहि काले परिक्वंतं, न पच्छा परितप्पए। जो समय पर अपना कार्य कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं । - अ.रा.पृ. 21652; सूत्रकृतांग-1/3/4115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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