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ॐ अहँ नमः। णमो पहुं सिरि राइंद सूरिवरस्स। गोडी पार्श्वजिनं थरादनगरस्थं नौमि पादाम्बुजे, राजेन्द्रं च जयंतसेनचरणं नत्वा निजश्रेयसे । जैनाचारनिधानकोशविहितं शब्दावलीमार्गणे, युक्तोऽहं गुरुवृत्तवर्णनविधौ इन्द्रपुरे भक्तितः ॥
प्रथम परिच्छेद
आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वर :
व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेवने अहिंसा-प्रधान जिस दयामय धर्म की प्ररुपणा की थी वह जैनधर्म के नाम से विख्यात है। उदार और सर्वजन हितकारी यह धर्म सर्वतन्त्र स्वतंत्र है। यह धर्म वीतरागता की प्राप्ति की साधना का सरल मार्ग बतलाकर जीवन में सार्थकता की सौरभ बिखेरता है और उपासक के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सरलता, सहजता, सात्त्विकता और प्रोज्जवलता का कमकुम छिडकता हैं।
श्रमण भगवान् चरमतीर्थपति श्री महावीर स्वामी के निर्वाण के साथ ही साधना की सर्वोच्च परम्परा भरत क्षेत्र में अवरुद्ध हो गयी। अवसर्पिणी काल का पांचवा आरा आरम्भ हुआ। श्री गौतम स्वामीजी, सुधर्मास्वामीजी, जंबूस्वामीजी के निर्वाण के साथ ही केवलज्ञानधारियों का क्रम समाप्त हो गया। धीरे धीरे भारत से ज्ञान-विज्ञान की सर्वोच्च और परमोच्च साधना के साधक तथा सिद्धियाँ दोनों लुप्त होते गए।
समर्थ मुनिपुंगवों ने शासन-धूरा संभाली, परंतु कालप्रभाव प्रबल रहा। आचार-विचार, तप-त्याग, ज्ञान-ध्यान में सर्वश्रेष्ठ श्रमणसंघ पर काल-प्रभाव से कभी-कभी आचार-शैथिल्य की काली छाया छायी । जब-जब शिथिलता उभरी तब-तब समर्थ शासनप्रभावक
और युगप्रभावक युगपुरुषों ने क्रियोद्धार कर के उसका निवारण किया। इस प्रकार इस परम्परा में धर्मशासन को व्यवस्थित रखने वाले स्वनामधन्य क्रियोद्धारक आचार्यवों में चूडामणि तपोगच्छीय श्री जगच्चन्द्रसूरि जी, चैत्रवाला गच्छीय श्री देवभद्र उपाध्याय (वि.सं. 1225), श्री आनंदविमल सूरि जी' (वि.सं. 1582), पंन्यास श्री सत्यविजयजी' आदि अनेक धुरंधर आचार्यादि हुए हैं, जिन्होंने अनेक कष्ट और उपसर्ग सहकर त्याग, विराग और आत्मशुद्धि की परम्परा को सजीव रखा और प्रभु महावीर के सिद्धान्तों को आगे बढाया। इसी परम्परा में विश्वपूज्य विश्वविख्यात श्री अभिधानराजेन्द्र बृहद् विश्वकोश निर्माता आचार्यश्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज हुए हैं, जिनका संक्षिप्त जीवन परिचय आगे दिया जा रहा हैं।
1.
श्री कल्पसूत्रार्थप्रबोधिनी पृ. 260 श्री पट्टावली समुच्च प्र.भा.पृ.56 वही पृ. 57 वहीं पृ. 69
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