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________________ कषाय ........................... कषाय और गुणस्थान कषाय की परिभाषा भाव कषाय के भेद-प्रभेद क्रोध मान-मद माया लोभ कषाय का स्वरूप कषाय का फल लेश्या ................ लेश्या सिद्धान्त की प्राचीनता लेश्या की परिभाषा लेश्या के प्रकार भाव लेश्या के प्रकार लेश्याओं के वर्ण लेश्या की गन्ध लेश्या के रस लेश्याओं का स्पर्श लेश्याओं के परिणाम लेश्याओं को समजने हेतु जंबुवृक्ष का दृष्टान्त लेश्याओं को समजने हेतु ग्रामघातक का दृष्टान्त लेश्याओं में गति आधुनिक विचार और लेश्यासिद्धान्त भामण्डल, आभामण्डल वर्ण : व्यक्तित्व की गुणात्मक पहचान क्या आभामण्डल दृश्य है ? लेश्या ध्यान लेश्या ध्यान : निष्पत्ति 5. मुनियों की आचारपरक शब्दावली का समीक्षण आचार्य उवज्झाय (उपाध्याय) अनागार साधु और श्रमणाचार ........ अणगार (अनगार) श्रमण साधु साधु के प्रकार स्थविरकल्प और जिनकल्प अनागार के सत्ताईस गुण प्रवज्या ..... अनगार धर्म ............. आचार-गोचर .......... निर्ग्रन्थ श्रमणाचार की विशेषता अष्टादश आचार स्थान गोचरचर्या (आहारचर्या) गोचरी भ्रमण की विधि गोचरी ग्रहण करने की विधि ......... Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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