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________________ जैनधर्म का उद्देश्य और लक्ष्य उपसंहार 2. मुक्ति का मार्ग : सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान- सम्यक्चारित्र मोक्षमार्ग शब्द की व्युत्पत्ति- प्रकार-भेद मोक्ष शब्द की व्युत्पत्ति, मोक्ष की परिभाषा, मोक्ष का स्वरुप मुक्त (सिद्ध) का स्वरुप मोक्ष अभावात्मक नहीं है अन्य दर्शनों में मोक्ष सम्यग्दर्शन 3. दर्शन का अर्थ सम्यग्दर्शन की परिभाषा सम्यग्दर्शन के पर्यायवाची नाम एवं नियुक्ति सम्यग्दर्शन की प्राप्ति की प्रक्रिया सम्यक्त्व का द्विविध वर्गीकरण सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण कर्मों की स्थिति के आधार पर सम्यक्त्व के भेद सम्यक्त्व का दसविध वर्गीकरण सम्यक्त्व के 67 भेद सम्यक्त्व प्राप्ति का फल सम्यग्ज्ञान Jain Education International ज्ञान के प्रकार आभिनिबोधिक/ मतिज्ञान सम्यक् चारित्र श्रुतज्ञान अवधिज्ञान मनः पर्यवज्ञान केवलज्ञान सम्यग्ज्ञान का फल चारित्र के भेद सामायिक चारित्र छेदोपस्थापनीय चारित्र परिहारविशुद्धि चारित्र सूक्ष्म संपराय चारित्र यथाख्यात चारित्र सम्यक् चारित्र का फल मोक्षप्राप्ति की प्रक्रिया अन्य दर्शनों में त्रिविध साधना मार्ग उपसंहार चारित्र का सैद्धांतिक पक्ष 1. अविनाशिता का सिद्धांत, 2. नश्वरता का सिद्धांत, 3. स्वतंत्रता का सिद्धांत, 4. बन्ध का सिद्धांत 5. कर्मवाद - कर्मविपाक 6. जीव का उपयोग स्वभाव उपसंहार 7. मोक्ष की सादि अनन्तता - व्यवहार से जीव मूर्त भी है- आत्मा की दशा 8. चारित्र का व्यावहारिक स्वरुप, 9. चारित्र का आधार For Private & Personal Use Only 155 155 156 156 157 157 158 158 159 159 159 159 159 160 161 161 161 162 165 166 166 166 167 168 169 169 169 171 22222262 172 172 175 175 176 176 176 177 178 179 180 180 181 182-183 1 184 185-186 187 188 www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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