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[234]... चतुर्थ परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन लेश्या ध्यान में मुख्य तीन रंगो का चयन किया जाता है। ध्यान आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। पीला रंग ध्यान की चमकता श्वेत, लाल और पीला - ये तीनों रंग शुभ्र, प्रशस्त एवं पवित्र शक्ति माना गया है। जो चेतना से जुड़ा है और नाभि चक्र/ मनोज्ञ हैं। इनका भिन्न-भिन्न चैतन्यकेन्द्रों पर ध्यान करवाया जाता तेजसकेन्द्र पर नियंत्रण करता है। इसमें स्वनियंत्रण तथा धैर्य की है। आचार्य महाप्रज्ञ ने जैनयोग पुस्तक में चैतन्य केन्द्रों पर रंगों के गुणात्मकता है। यह गहरी समस्याओं के समाधान की क्षमता रखता ध्यान के बारे में बताते हुए लिखा है - लाल रंग का ध्यान करने
है। ज्ञानकेन्द्र पर (जिसे शरीर शास्त्रीय भाषा में बृहद् मस्तिष्क, हठयोग से शक्तिकेन्द्र (मूलाधार चक्र) और दर्शनकेन्द्र (आज्ञा चक्र) जागृत होते
में सहस्त्रार चक्र कहा गया हैं) पर ध्यान करते हैं तो जितेन्द्रिय होने हैं। श्वेत रंग से विशुद्धि केन्द्र (विशुद्धि चक्र) तैजसकेन्द्र (मणिपुर
की स्थिति घटित होती है। योगशास्त्रविदोंने ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रियों चक्र) और ज्ञानकेन्द्र (सहस्त्रार चक्र) जागृत होते हैं।40
का परस्पर गहरा संबंध माना हैं। तेजोलेश्या का ध्यान - तेजोलेश्या का दर्शनकेन्द्र पर
इस केन्द्र पर भय, काम, वासना, सांसारिक-भाव तथा बालसूर्य जैसे लाल रंग में ध्यान किया जाता है। यह दर्शन केन्द्र
संवेगात्मक प्रभाव जागते रहते हैं। शरीर शास्त्रीय भाषा में यह एड्रीनल पिट्यूटरी ग्रंथि का क्षेत्र है। वैज्ञानिकों ने भी इसका रंग लाल बतलाया
के अधिक स्त्राव का कारण है। अत: माना गया है कि एड्रीनल
स्त्राव को पिट्यूटरी ग्रंथि नियंत्रित करती है और पिट्यूटरी ग्रंथि के है। यह सभी ग्रंथियों पर नियंत्रण करती है, इसलिए इसे 'मास्टर
स्थान पर योगियों ने ज्ञानकेन्द्र/सहस्त्रार चक्र की अवधारणा की है। ओफ ग्लैण्ड' कहा जाता है। अध्यात्म की भाषा में इसे तृतीय नेत्र
कृष्ण एवं नील लेश्या में व्यक्ति अजितेन्द्रिय होता है। पद्मलेश्या भी कहा गया है। पिट्यूटरी ग्रंथि सक्रिय होने पर एड्रीनल ग्रंथि स्त्राव
में जितेन्द्रियता के भाव पैदा हो जाते हैं। को संयमित करती है । फलत: कामवासना, उत्तेजना आदि निषेधात्मक
एलेक्स जोन्स का भी कहना है कि पीला रंग लज्जा, वृत्तियां अनुशासित रुप में अपना कार्य करती हैं।
विश्वासघात, झूठ, धनलिप्सा, क्रोध, धृणा, अज्ञान, इच्छा, सांसारिकता, लाल रंग रीढ की हड्डी के मूल-मूलाधार चक्र का नियंत्रक
ईर्ष्या और हतोत्साह जैसी सभी समस्याओं की चिकित्सा करता है। है। तंत्रशास्त्र और योगशास्त्र में मूलाधारशक्तिकेन्द्र का रंग लाल माना
जब पीले रंग पर ध्यान किया जाता है तो बौद्धिक तथा मानसिक गया है। यह रंग एड्रीनल के स्त्रावों को सक्रिय करता है। एड्रीनल
शक्ति इससे प्रभावित होती है। जब आभामण्डल में यह रंग चमकता का पिट्यूटरी के साथ गहरा संबंध है। अत: पिट्यूटरी/दर्शनकेन्द्र पर
है तो रचनात्मक तथा विश्लेषणातमक योग्यताएं उत्पन्न होती हैं। दिल ध्यान करने से इस ग्रंथि का नियंत्रण होने लगता है। लाल रंग साहस,
और दिमाग का सन्तुलन हो जाता है।1 पद्मलेश्या ऊर्जा के उत्क्रमण शक्ति, ऊर्जा, सक्रियता और बलिदान को दर्शानेवाला है। इस रंग
की प्रक्रिया है। इसके जागने पर कषायों की अल्पता होती है। के ध्यान द्वारा पांच इन्द्रियों के विषय पर विजय पाई जा सकती आत्मनियंत्रण सधता है और मन प्रशान्त रहता हैं। है, क्योंकि दर्शनकेन्द्र मस्तिष्क का स्थान है और मस्तिष्क में सभी
शुक्ललेश्या का ध्यान-शुक्ललेश्या का ध्यान ज्योतिकेन्द्र इन्द्रियों का कार्य सम्पादित होता है । दिव्य श्रवण, दृश्य, गन्ध, आस्वाद पर पूर्णिमा के चन्द्रमा जैसे श्वेत रंग में किया जाता है। शरीर शास्त्रीय एवं स्पर्श की शक्ति भी इससे उपलब्ध होती है।
दृष्टि से ज्योतिकेन्द्र का स्थान पिनियल ग्रंथि है। कषाय, कामवासना, दर्शनकेन्द्र पर तेजोलेश्या का लाल रंग में ध्यान करने से असंयम, आसक्ति आदि संज्ञाओं को उत्तेजित और उपशमित करने प्राणशक्ति जागती है। अन्तर्मुखी दृष्टिकोण बनता है। आगम में तेजोलेश्या का कार्य अवचेतक मस्तिष्क (Hypothalamus) से होता है। इसके को आत्मविकास का द्वार माना गया है। जब तक तेजोलेश्या नहीं साथ ज्योति केन्द्र का गहरा संबंध है। अवचेतक मस्तिष्क का सीधा जागती, कृष्ण, नील, कापोत लेश्या से घिरा व्यक्ति निषेधात्मक जीवन संबंध पिट्यूटरी और पिनियल के साथ है। ध्यान के क्षेत्र में श्वेत जीता रहता है। जब तेजोलेश्या जागती है तब दर्शनकेन्द्र/आज्ञाचक्र रंग द्वारा जब ज्योकि केन्द्र जागता है तब पिनियल ग्रंथि सक्रिय होती खुलता है। शरीर, मन और आत्मा का ऊर्ध्वारोहण होने लगता है। है और एक सन्तुलित व्यक्तित्व सामने आता है, क्योंकि नीचे के
रंग चिकित्सक भी मानते हैं कि लाल रंग का प्रभाव मुख्यतः सभी ग्रंथि-स्त्रावों को नियंत्रण करनेवाली यही ग्रंथि है। इस पर ध्यान भौतिक शरीर से संबंधित होने पर भी यह तारामण्डलीय (astral),
करने से शारीरिक, मानसिक समस्याएँ भी सुलझ जाती हैं। मानसिक (Mental) और आध्यात्मिक (Spiritual) शरीरों को भी प्रभावित
लेश्या-ध्यान में सफेद रंग का ध्यान वीतरागता की ओर करता है। लाल रंग मूल प्रवत्तियों तथा इच्छाओं को जगाते हुए अवचेतन
प्रस्थान करानेवाला माना गया है। शुभध्यान शुभमनोवृत्ति की सर्वोच्च मन पर कार्य करता है और यह रंग हमारे भीतर जीवन की आध्यात्मिक
भूमिका है। शुक्ललेश्या का ध्यान आत्म-साक्षात्कार की क्षमता जगाता शक्ति, योग्यता, पराक्रम और शारीरिक क्षमता को प्रेषित करता है।।
है। यहाँ से भौतिक और आध्यात्मिक जगत का अन्तर समझ में इस प्रकार दर्शनकेन्द्र पर लाल रंग और पिट्यूटरी ग्रंथि का
आने लगता हैं। समायोजन राग से विराग की ओर मोड देता है। चेतना आर्त-रौद्र
एडगर सेसी (Edgar Cayce) ने सफेद रंग को पूर्णता का
प्रतीक माना है। उन्होंने बताया कि हमारा सम्पूर्ण जीवन सन्तुलन ध्यान से धर्मध्यान में प्रवेश कर विशुद्धता की ओर बढ़ती है। व्यक्तित्व
में है तो इसका मतलब है कि हमारे सभी प्रकम्पन सिमट जाते रुपान्तरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
है और हमारा आभामण्डल पवित्र तथा सफेद प्रकाश से भर जाता पद्मलेश्या का ध्यान - लेश्या ध्यान में ज्ञानकेन्द्र (सहस्त्रार
हैं। रंग चिकित्सा के क्षेत्र में प्राण ऊर्जा का असन्तुलन सभी शारीरिक, चक्र) पर पीले रंग का ध्यान करवाया जाता है। भारतीय योगियों
मानसिक और आध्यात्मिक बीमारियों का मूल कारण है। ने पीले रंग को जीवन का रंग माना है। आगमों में पद्मलेश्या का रंग पीला माना गया है। लेश्याध्यान में ज्ञानकेन्द्र पर पीले रंग का 40. आचार्य महाप्रज्ञ - जैन योग, पृ. 142
41. Colour Meditations, p.9
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