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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
चतुर्थ परिच्छेद... [233] आभामण्डल में श्वेत वर्ण की प्रधानता हो तो माना जा निषेधात्मक भावों का निषेधक :- रंगध्यान- रंगध्यान सकता है - वह व्यक्ति प्रशान्त चित्तवाला, जितेन्द्रिय, मन, वचन के विषय में जैनों ने ही नहीं, अन्य पूर्वी एवं पश्चिमी वैज्ञानिकों और काया का संयम करनेवाला, शुद्ध आचरण से सम्पन्न, ध्यानलीन ने भी अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। यहाँ एलेक्स जोन्स की रंग और आत्म संयम करनेवाला है।
विषयक व्याख्याओं की प्रस्तुति प्रासंगिक हैं।" क्या आभामण्डल दृश्य है ?
लाल रंग- यदि जडता, अवसाद, भय, उदासी की भावनाओं यद्यपि विज्ञान के विश्लेषण व ध्ययन ने इस बात की पर नियंत्रण करना हो; वासनाओं और इच्छाओं पर विजय पानी हो; पुष्टि की है कि आभामण्डल से निकलनेवाली रश्मियों को प्रिज्म धृणा, क्रोध, स्वार्थता, लालच, निर्दयता, मारकाट की प्रवृत्ति आदि के माध्यम से या नंगी आंखों से नहीं देखा जा सता। इसका वैज्ञानिक निषेधात्मक वृत्तियों से मुक्त होना हो तो लाल रंग का ध्यान करना कारण बताया कि आभामण्डल के रंग सौर स्पेक्ट्रम के सामान्य रंगो उपयोगी रहता है। लाल रंग का ध्यान करने से स्नेह, उदारता, दूसरों की भांति नहीं होते हैं। सौर स्पेक्ट्रम के पराबैंगनी किरणों को जिनकी के प्रति संवेदनशीलता, स्वविकास की अभीप्सा जागती है। ऐसा तरंगदीर्धता बहुत कम होती है, मुश्किल से ही देखा जाता है। आभामण्डल व्यक्ति जीवन में कभी पलायनवादी नहीं होता। वह परिस्थिति से के रंग की तरंगदीर्धता तो उनसे भी कई गुणा कम होती है, इसीलिये घबराता नहीं, अपितु मुकाबला करने का साहस जुटा लेता हैं। इन्हें सामान्य दृष्टि द्वारा नहीं देखा जा सकता। इसे विशेष अन्तर्दृष्टि
नारंगी रंग - यदि मन विध्वंसात्मक क्रूर चिन्तन से ग्रस्त है, प्राप्त महापुरुष ही देख सकते हैं। शताब्दियों तक यही माना जाता झूठा अभिमान, सत्ता हथियाने की मनोवृत्ति, संवेदनहीनता, अविश्वास रहा कि आभामण्डल को सिर्फ अन्तर्दृष्टा ही देख सकते हैं। जैसे गलत संस्कार मन पर हावी हैं तो चमकदार नारंगी रंग का ध्यान
धार्मिक एवं रहस्यवादी परम्परा में और आज के वैज्ञानिक करना उपयोगी है। फलस्वरुप आशावादिता, मानवीय एकता, उदात्त युग की अवधारणा के बीच काफी दूरी रही है। रुस के प्रो. किलियान गुणों का जागरण, दूसरों के प्रति प्रेम, संवेदनशीलता आदि गुण प्रकट ने अन्वेषण कर यह सिद्धान्त दिया कि ओरा को उपकरणों के माध्यम होते हैं। धीरे धीरे निषेधात्मक व्यक्तित्व विधेयात्मकता में बदल जाता है। से भौतिक आंखों द्वारा भी देखा जा सकता है।
पीला रंग - यदि आभामण्डल में धुंधला पीला रंग हो इस संबंध में बाल्टर जोन किलनर, जो 1869 में लंदन तो व्यक्ति अहंवादी, मानसिक, वाचिक रुप से आक्रमक, पृथकत्ववादी के सेंट थोमस अस्पताल में फिजिशियन और सर्जन थे, उन्होंने होता है। उसके लिए चमकदार पीले रंग का ध्यान करना महत्त्वपूर्ण प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि स्क्रीन से किसी व्यक्ति का परीक्षण होता है, क्योंकि इससे व्यक्ति भयमुक्त एवं दुराग्रह मुक्त हो जाता किया जाता है तो उसके सिर, हाथों के चारों ओर एक हल्की-सी है। बौद्धिक व मानसिक चेतना का विकास होता है। विध्वंसात्मक स्लेटी रंग की धुंध दिखाई देती है। यदि स्क्रीन हटा भी दी जाए दृष्टिकोण समाप्त होता है और रचनात्मक दृष्टिकोण पनपता है। तो बाद में कुछ क्षण तक यह धुंध दिखाई देती है।
हरा रंग - यदि व्यक्ति में पाखंडता, अहंवादिता, कायरता, उन्होंने यह भी बताया कि मनुष्य में कभी-कभी दो या लालसा, स्वार्थपरता, मोह, ईर्ष्या और असुरक्षा की भावना पैदा हो तीन आभामण्डल भी दिखाई दे सकते हैं। एक शरीर के पास लकीर जाए तो इनसे मुक्त होने के लिये हरे रंग का ध्यान किया जाता है, की भांति होता है जो कि त्वचा से लगभग पौन इंच तक फैला क्योंकि हरे रंग के ध्यान से विवेक शक्ति, निर्णायक क्षमता, आशावादिता रहता है। दूसरा कुछ चौडा परन्तु बिना किसी निश्चित आकृति वाला जागती हैं। लगभग दो या तीन इंच चौडा होता है और इससे परे तीसरा ओरा
नीला रंग - नीले रंग का ध्यान उस समय व्यक्ति को जो लगभग 6 इंच तक का हो सकता है। बहुत सूक्ष्मता से देखने करना चाहिए, जब व्यक्ति प्रतिक्रियावादी, आक्रमक, रुढिवादी और पर शरीर और प्रथम आभामण्डल के बीच ज्ञात होनेवाले खाली स्थान भयभीत होता है। चमकदार नीला रंग इन संस्कारों का उपशमन कर को उन्होंने इथरीक डबल के नाम से पहचाना। यह शरीर एवं देता है। फलत: व्यक्ति में शान्ति, धैर्य, सन्तोष, वफादारी और आध्यात्मिक आभामण्डल के मध्य विभाजक का कार्य करता है।
विकास उतरने लगता है। पद केन्द्र .वर्ण निष्पत्ति
जामुनी और बैंगनी रंग - इस रंग का ध्यान उन व्यक्तियों णमो अरिहन्ताणं ज्ञानकेन्द्र श्वेत वर्ण ज्ञान चेतना का के लिये अत्यावश्यक है जो भ्रम/माया में फंसे हुए हैं। भौतिकता
जागरण
में डूबे हैं। काल्पनिक चिन्तन में खोये रहते हैं। ऐसे व्यक्ति जब णमो सिद्धाणं दर्शनकेन्द्र लाल वर्ण शारीरिक सामर्थ्य चमकदार रंग का ध्यान करते हैं तो उनमें अन्तःप्रेरणा और आन्तरिक
एवं अन्तर्दृष्टि का शक्ति जागती है। वे भविष्य को साक्षात् देखने लगते हैं। जागरण
लेश्या ध्यान :णमो आयरियाणं विशुद्धिकेन्द्र पीला वर्ण आवेग उपशमन
प्रेक्षाध्यान पद्धति में लेश्या ध्यान की अवधारणा मुख्यतः णमो उल्झायाणं आनन्दकेन्द्र नीला वर्ण शांति, समाधि व्यक्तित्व रुपान्तरण की ओर संकेत करती है। यद हम अशुभलेश्या से णमो लोएसव्वसाहूणं शक्तिकेन्द्र श्याम वर्ण ग्राहक शक्ति का शुभलेश्या में आना चाहते हैं तो रंगो द्वारा इस उद्देश्य तक पहुंचा जा
विश्वास
सकता है। तंत्रशास्त्र में चेतना-विकास इन्द्रिय-विजय, ज्ञान शक्तियों
37. Audrey Kargere, Colour and Personality p.1-3
38. Walter J. Kilner, The Human Atmosphere, An Exhausके तथा वीतरागता के अनेक प्रयोग प्रस्तुत किए गए हैं। ये सारे
tive Survey Complied by Health Research, Colour महत्त्वपूर्ण प्रयोग लेश्या सिद्धान्त से सम्बद्ध हैं।
Healing p. 80 39. Alex Jones, Seven Mansions of Colour, p. 38-45
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