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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
चतुर्थ परिच्छेद... [207]
1 सर्वविरति
10 उपयोग (2 केवल के बिना)
अनंतानुबंधी-अप्रत्याख्यानीय-प्रत्याख्यानीयकषाय चतुष्क (12 कषाय) के क्षयोपशम से ज्ञानचतुष्कः तत्संबंधी ज्ञानावरण के क्षयोपशम से दर्शनत्रिकः तत्संबंधी दर्शनावरण के क्षयोपशम से कुज्ञानत्रिकः तत्संबंधी ज्ञानावरण के क्षयोपशम एवं उसके साथ ही मोहनीय के उदय
6 से 10 4 से 12 4 से 12
1,2,3
यहाँ इतना विशेष है कि दर्शनत्रिक में अवधि दर्शन के क्षयोपशम में विभंगज्ञानी को अवधि दर्शन की प्राप्ति होने से सिद्धांतकार ने अवधि दर्शन को 1 से 12 गुणस्थान बताये हैं। जबकि कर्मग्रंथ में कर्मप्रकृति के गुणस्थान प्राप्ति के वर्णन में प्रथम तीन गुणस्थान में अवधि दर्शन का निषेध करने से कर्मग्रंथकार ने अवधि दर्शन के 4 से 12 गुणस्थान बताये हैं।59 | 4. औदयिक भाव160 :- तत्संबंधी कर्मो के उदय से जीव को जो विकारी भाव उदय में आते हैं, उसे औदयिक भाव कहते हैं। क्रमांक भाव भाव संख्या
कर्मोदय की कारणता गति4 तत्संबंधी गति नाम कर्म के उदय से प्राप्त होता भाव । कषाय
तत्संबंधी कषाय मोहनीय कर्म के उदय से प्राप्त होता भाव।
3 तत्संबंधी वेद मोहनीय कर्म के उदय से प्राप्त होता भाव । लेश्या
तत्संबंधी लेश्या के उदय से प्राप्त होता भाव । मित्यात्व
मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के उदय से प्राप्त होता भाव । अज्ञान
मोहनीय कर्म के उदय से प्राप्त होता भाव । असंयम
चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से प्राप्त होता भाव । असिद्धत्व
आठों कर्म के उदय से प्राप्त होता भाव । 21
वेद
कुल
पाँच निद्रा आदि भी औदयिक भाव ही कहलाते हैं परन्तु ग्रंथकार ने यहाँ 21 की ही विवक्षा की हैं। इन 21 भंगों के गुणस्थान मार्गणास्थान और गुणस्थान के टेबल में बताये हैं। 5. पारिणामिक भाव61 :- जीव के परिणाम से जो भाव प्राप्त होता है उसे पारिणामिक भाव कहते हैं। या जिस कारण से मूल पदार्थ में किसी प्रकार का परिवर्तन न हो वैसा जीव और धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों में रहा हुआ स्वतः सिद्ध स्वभाव। जैसे - (1) जीवत्व (2) भव्यत्व (3) अभ्यत्व 6. सांनिपातिक भाव162:- दो, तीन भावों के संयोग से उत्पन्न होने वाले भावों को सांनिपातिक भाव कहते हैं। सांनिपातिक भाव के 26 भंग होते हैं जिसमें से 20 असंभवित हैं और 6 भंग संभवित हैं, उन्हें यहाँ बता रहे हैं।
1. क्षायिक पारिणामिक : सिद्ध भगवान् को होता है। 2. क्षायिका औदयिक पारिणामिक :- भवस्थ केवली भगवान् को 13 वें सयोगी केवली गुणस्थान में होता है। 3. क्षायोपशमिक औदयिक पारिणामिक :-चारों गति के क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी जीवों को चतुर्थ गुणस्थान में होता है।
तिर्यंच 4, 5 वें गुणस्थान में और मनुष्य को 4 से 7 गुणस्थान में होता है।
उपशम क्षायोपशमिक औदयिक पारिणामिक :- 4 गति के उपशम सम्यक्त्वी जीवों को उपरोक्तानुसार 4 से 7 गुणस्थान तक होता है।
क्षायिक क्षायोपशमिक औदयिक पारिणामिक :- चारों गति के क्षायिक सम्यक्त्वी जीवों को उपरोक्तानुसार 4 से 7 गुणस्थान तक होता है।
उपशम क्षायिक क्षायोपशमिक औदयिक पारिणमिक :- उपशम श्रेणी में रहे क्षायिक सम्यक्त्वी जीव मनुष्य को 8 से ____ 11 गुणस्थान में यह भंग रहता हैं। भावों का महत्त्वा:
समस्त द्रव्यों का अपना अपना पारिणामिक भाव होता है। जीवों के औपशमिक आदि पाँच भाव होते हैं। सभी संसारियों के
159. षडशीति चतुर्थ कर्मग्रंथ, भावप्ररुपणा, द्वार, पृ. 10-11, -ले. विवेचक आचार्य श्रीमद्विजय वीरशेखरसूरि 160. अ.रा.पृ. 3/87; तत्त्वार्थसूत्र, 2/1-7;जिनागमसार, पृ. 148 से 160; कर्मग्रंथ 4/64, 65, 66 161. अ.रा.पृ. 5/875 162. अ.रा.पृ. 7/360-7; चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. 12, 13 -ले. आ.वीरशेखरसूरि 163. धवलासार, पृ. 300; जिनागमसार, पृ. 168
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