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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन तृतीय परिच्छेद... [99] 'आयतन' शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आलय - आलय (पुं.) 2/423 'आलय' शब्द के आधार, आश्रय, आवास, गृह, स्थान, उपाश्रय, वसति (साधुओं को रहने योग्य स्त्री, पशु, नपुंसक रहित स्थान), दानवों (देवशत्रुओं) का अत्यन्त भयंकर खांडव वन आदि अर्थ होते हैं। इभ्य - इभ्य (पुं.) 2/653 वणिक, राजा, हस्ति (हस्तिपक/हस्तिपालक), महा धनपति, सूंड में कदली दण्ड उठाया हुआ हाथी जिससे ढक जाय इतने द्रव्य का स्वामी 'इभ्य' कहलाता हैं। इब्भजाइ - इभ्यजाति (स्त्री.) 2/653 __ आर्य जाति को 'इभ्य जाति' कहते हैं । जाति आर्य के छः प्रोकार हैं - (1) अम्बष्ठा (2) कलन्दा (3) विदेहा (4) वैदिगाइया (5) हरिता (6) चुंचुणा इयरकुल - इतरकुल (न.) 2/654 अन्त-प्रान्त कुल को 'इतरकुल' कहते हैं। उच्छव-उत्सव (पुं.) 2/762; ऊसव - उत्सव (पुं.) 2/1214 जिसमें विशिष्ट खान-पानादि हो, या विशिष्ट पर्व दिन जिसमें सामान्य लोग भी साधु के पास धर्मश्रवण करते हैं, या आनंदजनक व्यापार, विवाहादि तथा इन्द्र-महोत्सवादि को 'उत्सव' कहते हैं । उडय - उटज (पुं.) 2/778 पत्तों आदि से निर्मित शाला (झोपडी) या तापसाश्रम, को 'उटज' कहते हैं। उत्तमकुल - उत्तमकुल (न.) 2/783 उग्रकुल, भोगकुल, चान्द्रादि कुल को 'उत्तमकुल' कहते हैं। उवगरण - उपकरण (न.) 2/905 जिसके द्वारा उपकार किया जाता हो / क्रिया की जाती है, उन्हें 'उपकरण' कहते हैं। हाथी, घोडा, रथ, आसन, पलंग, धन, धान्य, स्वर्णादि, वस्त्र, कामभोग के साधन आदि 'उपकरण' कहलाते हैं। धर्म शरीर के पालन हेतु जिसके द्वारा व्रती का उपकार होता है उसे भी ‘उपकरण' कहते हैं । ज्ञानादि के साधन, दण्ड, रजोहरण, वस्त्र, पात्र आदि व्रती के उपकरण है। यदि उपकरण का यत्न (जयणा) पूर्वक उपयोग नहीं किया जाय तो उसे 'अधिकरण' कहते हैं। अधिकरण से पाप कर्मो का बन्ध होता है। कड - कट (पुं.) 3/202 उत्कट, आचार, कटदि, नल नामक तृण, शव, शवरथ, श्मशान, वंशकट, संथारा (शय्या), अंतरयुक्त वांसमय भाग के लिये 'कड' शब्द का प्रयोग किया जाता है। अन्यत्र पर्वत का एक भाग, प्रेत, एक प्रकार की औषधि, बाण, समय, आचार, आवरणकारक, तृण, क्रियाकारक, द्यूतक्रीडा के साधनरुप द्रव्य के लिये 'कड' शब्द 'कट' अर्थ में और 'निष्पादि', परिकर्मित, अनुष्ठित, निर्वतित कार्य के लिए 'कृत' अर्थ में प्रयुक्त हैं। आसन अर्थ में तृणादि के द्वारा निष्पन्न, वांस की सली के द्वारा निष्पन्न, चमडे का, खाट आदि, कंबल तथा तन्तु आदि से निर्मित आसन भेद और योगासन में 'उत्कटासन' के लिए 'कट' शब्द प्रयुक्त हैं। कडग घर - कटकगृह (न.) 3/203 वंशदल (वांस के पत्ते या चटाई) के द्वारा निर्मित गृह को 'कटकगृह' (वाँस की झोपडी) कहते हैं। कम्मशाला - कटकगृह (न.) 3/345 जहाँ कुम्हार घडे आदि बनाता है उस कुम्हारवाडे को 'कम्मशाला' कहते हैं। कला - कला (स्त्री.) 3/376 विविध विषय संबन्धी ज्ञान को 'कला' कहते हैं। यहाँ शास्त्रोक्त 72 (बहत्तर) कलाएँ वर्णितहैं। 'कला' शब्द के मात्रा, काल, अंश, देहस्थ धातु का भेद, धूल, नौका, कपट आदि अन्य अर्थ भी किये गये हैं। कुडुंब - कुटुम्ब (पुं., न.) 3/579 पोष्यवर्ग, भाई, संतान, स्वजन वर्ग आदि को 'कुटुम्ब' कहते हैं। कुत्तिआवण - कुत्रिकापण, कुत्रिजापण (पुं.) 3/584 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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