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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
तृतीय परिच्छेद... [97]
अन्यत्र 'भैरव' शब्द का अर्थ शंकर, अवतार, भय का साधन और भयंकर भी किया गया हैं। भास - भाष्य (न.) 5/1521
गाथा निबद्ध सूत्र-व्याख्यानरुप ग्रंथ को 'भाष्य' कहते हैं।
अन्यत्र श्रूयमाण जप, कथ्य, वचन, प्रकाश, गोष्ठ, कुक्कुर, शुक्र ग्रह, भास पक्षी, भस्म (राख) आदि अर्थों में भी 'भास' शब्द प्रयुक्त होता हैं। भासा - भाषा (स्त्री.) 5/1522
भाषण, वचन, बोली जाने वाली वाणी को 'भाषा' कहते हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार से भाषा के भेद-प्रभेद, वाक्शुद्धि का फल, भाषण विधि, 'अपौरुषेयी वेदभाषा' मत का निराकरण आदि विषय वर्णित हैं। महुर - मधुर (त्रि.) 6/230
सुनने योग्य सूत्र-अर्थ दोनों और सुनने में सुन्दर, आह्लादकारी, गंभीर (घोष महाध्वनि युक्त एसी ग्राह्य दुर्गम्य अर्थ भी सुनने मात्र से श्रोता की समझ में आ जाय ऐसी भाषा को मधुर भाषा कहते हैं। अन्य अर्थ में राग, स्वर, गुड, शक्कर, कोकिल स्वर के अर्थ में 'मधुर' शब्द प्रयुक्त हैं। . माउयकखर - मातृकाक्षर (न.) 4/235; माउया - मातृका (स्त्री.) 4/235
अकारादि अक्षरों को 'मातृका' कहते हैं। इसमें प्रायः ऋ, ऋ, लु, ल-ल्ल-इन पाँच वर्णो को नहीं गिनते। राग मंडल - रागमण्डल (न.) 4/546
वसन्तादि रागों के समूह को 'रागमण्डल' कहते हैं। लिवि - लिपि (स्त्री.) 4/659
लेप्यविधि और अक्षर लेखन प्रक्रिया को लिपि कहते हैं। लिपि के अठारह प्रकार निम्नानुसार हैं1. हंस, 2. भूत,
3. यक्षी, 4. राक्षसी 5. उड्डी, 6. यवनी, 7. तूर्की, 8. किरी 9. द्राविडी/द्रविड 10. सिंधी 11. मालवीनि 12. नडी, 13. नागरी, 14. लाट, 15. पारसी, 16. अनिमित्ती
17. चाणक्यी 18. मूलदेवी। वक्क - वाक्य (न.) 6/7770
एक अर्थ (की पुष्टि करने वाले अनेक शब्दों (पदों) का मेलाप वाक्य कहलाता हैं। वचन को वाक्य कहते हैं। यहाँ वाक्य के द्रव्य और भाव रुप भेद के भी दिग्दर्शन कराया गया हैं। वण्ण - वर्ण (पु.) 6/818
साहित्य में अकार-ककारादि वर्ण, जिसके द्वारा अर्थ प्रकट किया जाय, जिसके द्वारा वस्तु का वर्णन किया जाय, प्रशंसा, धन्यवाद को वर्ण कहते हैं। वत्तिअ - वार्तिक (न.) 6/833
'वृत्ति' अर्थात् सूत्र विवरण के व्याख्यान को भाष्य अथवा 'वार्तिक' कहते हैं। गणधरादि उत्कृष्ट श्रुतधर आत्माओं के व्याख्यान और सूत्र के विषय में गुरुपरम्परागत व्याख्यान को 'वार्तिक' कहते हैं। वयण - वचन (न.) 6/888
वाक्य रचना में विवक्षित अर्थ का कथन 'वचन' कहलाता हैं।
यहाँ वचन के विभिन्न प्रकार से अनेक भेद-प्रभेद का परिचय दिया गया हैं। विभासा - विभाषा-(स्त्री.) 6/1203
विविध भाषा, विषय विभाग के व्यवस्थापनपूर्वक की गयी व्याख्या, विविध पर्यायवाची शब्दों के द्वारा (वाच्य पदार्थ का) स्वरुप कथन, श्रुत के शेष-विशेष रूप भाषा और अर्थकथन 'विभाषा' कहलाता हैं। 'विभाषा' को भाष्य या वार्तिक भी कहते हैं। समास - समास (पुं.) 7/425
अभिधान राजेन्द्र कोश में आचार्यश्रीने समास के अनेक अर्थ बताते हुए साहित्यिक दृष्टि से दो या उससे अधिक पदों के एकीकरण को, विस्तार के संक्षिप्तकरण को समास कहा हैं। मुख्यतया समास सात प्रकार के हैं
(1) द्वन्द्व (2) बहुव्रीहि (3) कर्मधारय (4) द्विगु (5) तत्पुरुष (6) अव्ययीभाव और (7) एकशेष समास । (अनुयोगद्वार सूत्र) राजेन्द्र कोश में यथास्थान इनकी व्याख्या भी दी गई हैं। समास दोष - समास दोष । (पुं.) 7/425
साहित्य में समास विधि प्राप्त होने पर समास न करना समास विधि प्राप्त न होने पर समास करना समास-दोष हैं।
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