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[94]... तृतीय परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
1. साहित्यिक शब्दावली
इस शीर्षक में साहित्य अर्थात् शब्द और अर्थ से संबन्ध विशेष का परिचय दिया गया है भले ही वे नवरसचिरवाङ्मय से सम्बद्ध हों या व्याकरण से। यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों का संकेत मात्र से परिचय कराया जा रहा हैं। अंकलिवि - अङ्कलिपि (स्त्री.) 1/35
'ब्राह्मी' आदि लिपि में अंकों के द्वारा लेखनविधिरुप बारहवीं लेख्य विधि 'अंकलिपि' है। अंग-अङ्ग (न.) 1/36
अभिधान राजेन्द्र कोश में 'अंग' शब्द के आमंत्रण विषयक, अलंकार विषयक, देहावयव, लौकिक वेदों के शिक्षा, कल्प आदि अंग और लोकोत्तर (जैन) प्रवचन के आचारांग आदि द्वादशाङ्ग-इत्या अनेक अर्थ किये हैं। अडयालकोडगरइय - अष्टचत्वारिंशत्कोष्ठकरचित (त्रि.) 1/257
अडतालीस (48) कोष्ठक भेदों से युक्त विचित्र छन्द रचना । (छन्दोबद्ध गोपुर रचना विशेष) 'कावणमाला' -इस प्रकार की रचना
अप्पक्खर-अल्पाक्षर (न.) 1/614
महान् अर्थयुक्त अल्प अक्षरवाले सूत्रों को 'अल्पाक्षर' कहते हैं, जैसे -'सामायिक सूत्र' । अबद्धसुय-अबद्धश्रुत (न.) 1/680
गद्यात्मक श्रुत (आगम ग्रंथ) को 'अबद्धश्रुत' कहते हैं। आगमसत्थ-आगमशास्त्र (नपु.) 1/96
विधिपूर्वक, सकलश्रुतज्ञानविषयक व्याप्ति के द्वारा, मर्यादापूर्वक यथावस्थित प्ररुपणारुप ज्ञान जिसके द्वारा सीखा जाय, जाना जाय (बोध प्राप्त किया जाय) उसे 'आगम शास्त्र' कहते हैं। विशेषावश्यक भाष्य में आगम शास्त्र का अर्थ 'श्रुतज्ञान' किया गया है। आदंस/आदंयं/आदरिस/आदस्स लिवि - आदर्श लिपि (स्त्री.) 2/238
ब्राह्मी लिपि की लेखन विधि को 'आदर्श लिपि', कहते हैं। आ(य) रियवेद - आर्यवेद (पुं.) ..
स्वयं के स्वाध्याय के लिए तीर्थंकरों की स्तुतिरुप और श्रावक धर्म के प्रतिपादक भरत चक्रवर्तीकृत वेद जैन दर्शन में 'आर्यवेद' कहे गये हैं। आयासलिवि - आयासलिपि (स्त्री.) 2/390
ब्राह्मीलिपि की अठारह प्रकार की लेखनविधि में पंद्रहवीं लेखनविधि को 'आयासलिपि' कहते हैं। अवणास-उपन्यास (पुं.) 2/926
प्रयत्नपूर्वक चिन्तनपूर्वक की गई शास्त्र रचना 'उपन्यास' कहलाती है। इसके चार भेद हैं- 1. तद्वस्तुक, 2. अन्यवस्तुक, 3. प्रतिनिभ और 4. हेतु । इनका विशेष परिचय अभिधान राजेन्द्र कोश में उन-उन शब्दों पर दिया गया है। एकसेस - एकशेष (पुं.) 3/31
समान रुपवाले और एक विभक्तियुक्त अनेक सामासिक पदों में से समान होने पर जब एक ही पद शेष रहता है, उसे एकशेष कहते हैं। ओज - ओजस् (न.) 3/91
साहित्य विधा में ओज का अर्थ गौडी रीति, भाषा का गुण, और रस में वीर-वीभत्स और रौद्र रस से भी क्रमप्राप्य आधिक्य को 'ओज' कहते हैं।
अन्यत्र 'ओज' शब्द के परमाणु, राग-द्वेष रहित चित्त, विषम राशि (गणित परिभाषा गत), मानसिक स्थिरता, विद्यादिरुप बल, शारीरिक ओज, स्त्री संबन्धी रक्त विशेष (आर्तव), उत्पत्ति देश में आहत योग्य पुद्गल समूह, ज्ञानेन्द्रियों की पटुता, स्वकार्य करने की शक्ति, चित्त के विस्तार रुप दीप्तिमत्ता आदि अर्थ किये गये हैं। कत्थ - कथ्य (नपुं.) 3/219
जिसमें कथा गायी जाती है, उसे 'कथ्य' कहते हैं। यह काव्य का एक भेद है। काव्व - काव्य (न.) 3/393
कवि के अभिप्राय, कविकृत गद्यपद्यात्मक ग्रंथ, स्तुति, वर्णन, को 'काव्य' कहते हैं। काव्य के चार प्रकार हैं - (1) गद्य (2) पद्य (3) कथ्य और (4) गेय ।
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