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[80]... द्वितीय परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
अभिधान राजेन्द्र कोश में प्राप्त मंगलाचरण पद्यों का अनुशीलन
मंगलाचरण : भाग-1 प्राकृत :जयति सिरिवीरवाणी, बुहविबुहनमंसिया या सा। वत्तव्वयं से बेमि, समासओ अक्खरक्कमसो ॥ संस्कृत :जयति श्रीवीरवाणी, बुधविबुधनमस्कृता या सा। वक्तव्यं तस्यां ब्रवीमि, समासतो ऽक्षर क्रमशः ॥
अर्थ :
सर्वज्ञ द्वारा निर्दिष्ट तत्त्वज्ञान के पंडितों (गणधरों) और विशेषज्ञों (श्रुतधर, पूर्वधर) के द्वारा जो नमस्कृत (वन्दित) है, वह अनंतश्री से विभूषित चरम तीर्थंकर महावीर स्वामी (वीर) की वाणी जयवंत वर्तो । उसके विषय में जो कुछ भी वर्णनीय है, वह संक्षेप में वर्णानुक्रम से कहता हूँ।
अर्थ :
श्री वर्धमान (वीर जिनेश्वर) की वाणी को भक्तिपूर्वक प्रणाम करके (उनके) समस्त (कथनीय) प्रवचन वक्तव्य को और उनके शब्दों के विषय में अक्षर क्रम से कहूँगा।
अर्थ :
जिनेश्वर की वाणी, गुरु के चरण एवं श्रुत (ज्ञान) के प्रभाव को चित्त में धारण करके, इस श्रुत के समस्त सार को ग्रहण करके तीसरे भाग में कहूँगा।
मंगलाचरण : भाग-2 प्राकृत :सिरिवद्धमाणवाणि, पणमिअ भत्तीइ अक्खर कमसो। सद्दे तेसु य सव्वं, पवयणवत्तव्वयं वोच्छं ।। संस्कृत :श्रीवर्धमानवाणी, प्रणम्य भक्तित: अक्षरक्रमशः । शब्देषु तेषु च सर्वं, प्रवचनवक्तव्यं वक्ष्यामि। मंगलाचरण : भाग-3 प्राकृत :वाणिं जिणाणं चरणं गुरुणं, काऊण चित्तम्मि सुयप्पभावा। सारं गहीऊण सुयस्स एयं, वोच्छामि भागे तइयम्मि सव्वं ।। संस्कृत :वाणीं जिनस्य चरणं गुरोः, कृत्वा चित्ते श्रुतप्रभाव । सारं गृहीत्वा श्रुतस्य अस्य, वक्ष्यामि भागे तृतीयें सर्वं ।। मंगलाचरण : भाग-4 प्राकृत :नमिऊण वद्धमाणं, सारं गहिऊण आगमाणं च। अहुणा चउत्थभागं, वोच्छं अभिहाणराइंदे ।। संस्कृत :नत्वा वर्धमानं, सारं गृहीत्वा आगमानां च। अधुना चतुर्थभागं, वक्ष्यामि अभिधान राजेन्द्रे ॥ मंगलाचरण : भाग-5 प्राकृत :वीरं नमेऊण सुरेसपुज्जं, सारं गहेऊणं तयागमाओ। साहूण सड्डाण य बोहयं तं, वोच्छामि भागम्मि य पंचमम्मि । संस्कृत :वीरं नत्वा सुरेशपूज्यं, सारं गृहीत्वा तस्यागमेभ्यः । साधुं श्रावकं च बोधयितुं तं, वक्ष्यामि भागे च पंचमे ॥ मंगलाचरण : भाग-6 प्राकृत :सिरि वद्धमाणसामि, नमिऊण जिणागमस्स गहिऊण । सारं छठे भागे, भवियजणसुहावहं वोच्छं । संस्कृत :श्री वर्धमानस्वामिनं, नत्वा जिनागमस्य गृहीत्वा सारं षष्ठे भागे, भविकजनसुखावह वक्ष्यामि ।।
अर्थ :
वर्धमान स्वामी को नमस्कार करके, आगमों के सार को ग्रहण करके अब (मैं) 'अभिधान राजेन्द्र' (कोश)के (विषय में) चौथे भाग को कहूँगा।
अर्थ :
देवेन्द्रों के पूज्य ऐसे महावीर स्वामी को नमस्कार करके उनके आगमों (जैनागमों) में से सार ग्रहण करके साधु और श्रावकों को बोध कराने के लिये उसे पांचवें भाग में कहूँगा।
अर्थ :श्री वर्धमान (24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी) को नमस्कार करके, जिनागमों के सार को ग्रहण करके भव्य जीवों के सुख के लिये छठवें भाग में कहूँगा।
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