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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन द्वितीय परिच्छेद... [79] लिखी गयी है जबकि उपोद्घात मुनिश्री दीपविजयजी एवं यतीन्द्र है। यहीं पर व्याकरण के कुछ नियमों का भी स्पष्टीकरण किया गया विजयजी के द्वारा संस्कृत भाषा में निबद्ध किया गया है। और प्रथम है। यहाँ पर व्याकरणिक कोटियों की विलक्षणता, परिचय एवं तत्सम्बद्ध भाग में ही द्वितीयावृत्ति की प्रस्तावना 'द्वितीयावृत्ति प्रस्तावना' - मतभेदों का भी संकेत किया गया है। शीर्षक से वर्तमान आचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरि द्वारा हिन्दी द्वितीय आवृत्ति की प्रस्तावना यद्यपि संक्षिप्त है किन्तु उसमें में निबद्ध की गयी है। द्वितीय भाग में 'प्रस्तावना' शीर्षक से एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा की गयी है जिसके बिना अभिधान उपाध्याय श्री मोहन विजयजी ने संस्कृत में प्रस्तावना लिखी है। राजेन्द्र कोश के महत्त्व पर पूरा ध्यान नहीं जा सकता, वह हैं - जबकि तृतीय भाग में "प्रस्ताव" शीर्षक से उपाध्याय श्री मोहन 'कोश परम्परा एवं जैन कोश परम्परा' का परिचय। विजयजी, श्री दीप विजयजी एवं श्री यतीन्द्र विजयजी -संशोधकों यहाँ यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि इन प्रस्तावों के के द्वारा संस्कृत में लिखा गया है। चतुर्थ भाग में यही प्रस्तावना लेखन चतुष्टय में से किसी ने भी पंचम, षष्ठ एवं सप्तम भाग में संशोधकद्वय के द्वारा 'घण्टापथ' नाम से लिखी गयी है। संक्षिप्त भी प्रस्ताव क्यों नहीं लिखा? इस विषय में हमारा मन्तव्य उपर्युक्त सभी प्रस्तावों का परिचय यद्यपि दिया जा चुका यह है कि यद्यपि इन अंतिम तीनों भागों में जैन दर्शन/धर्म संबंधी है परंतु फिर भी इन सब का सापेक्ष समालोचन करना आवश्यक प्रतीत होता है। अतिमहत्त्वपूर्ण शब्द आये हैं, फिर भी, चूंकि उन सिद्धांतों का परिचय सभी प्रस्तावों में यह सामान्य रुप से देखा गया है कि पूर्व के चार भागों में आये शब्दों के परिचय के साथ ही दिया जा प्रायः सभी में अभिधान राजेन्द्र कोश की रचना का प्रयोजन, पृष्ठभूमि चुका है इसलिए पिष्ट-पेषण न करते हुए अनावश्यक विस्तार से बचा और उपयोगिता पर कुछ न कुछ अवश्य लिखा प्राप्त होता है। दूसरी गया है। समानता यह है कि सभी में जैन दर्शन/जैन धर्म के विशेष सिद्धांतों इस प्रकार अभिधान राजेन्द्र कोश जैसे विशालकाय ग्रंथ का परिचय या तो विवेचन पद्धति से दिया गया है या तो फिर को प्रस्तुत करने के लिये संशोधक महोदयों ने विभिन्न-शीर्षकों से पूर्वपक्ष और उत्तर पक्ष के माध्यम से दिया गया है। तीसरी समानता प्रस्तावनाएँ लिखी है। इन प्रस्तावनाओं को देखने से ही अभिधान यह है कि संबद्ध भागों में आये हुए विशिष्ट शब्दों का विवेचनात्मक राजेन्द्र कोश अध्येताओं के सामने मानो प्रस्तुत हो ही जाता परिचय दिया गया है। है और अध्येताओं को जिज्ञासा शांत करने में तनिक भी अन्य विशेषता यह है कि प्रथम भाग में संदर्भ ग्रंथ सूचि, परेशानी नहीं होता। संकेत सूची का भी समावेश किया गया है। इसके साथ ही प्राकृत शब्दों के गठन और पाठान्तर का संकेत भी विवेचित किया गया 78. अ.रा.भा.1, प्रथमावृत्ति प्रस्तावना શ્રમણશંઘનો ઉપકા) આ વિશ્વવંદ્ય શ્રમણ-શ્રમણી વર્ગ સર્વ કોઈને ઘણો ઉપયોગી છે. મનુષ્યમાં भानवता, नीति, व्यवहारशुद्धि, स६ज्ञान, ध्या, हान, सहायार, सेवा वगेरे Gथ्य સંસ્કારોને ઉત્પન્ન ક૨ના૨, સિંચન ક૨ના૨, પોષણ ક૨ના૨, વૃદ્ધ દ૨ના૨ આજ વર્ગ છે. સાધુપુરૂષના એક વચન માત્રથી અનેક ભવ્ય મનુષ્યોનાં હદય પરિવર્તન થાય છે જે હજાશે રાજકીય કાયદાઓથી પણ શક્ય નથી. આત્મકલ્યાણનું માર્ગદર્શન કરાવનાર યુગ યુગના દીવા જેવા ગંભીર શાસ્ત્ર/સાહિત્ય ગ્રંથોનું સર્જન કરી તેનો અમર વારસો આપના૨ પણ જેન શ્રમણ વર્ગ જ છે. સíહત્ય સર્જકો પ્રધાનપણે શ્વેતામ્બર સાધુઓઆચા-નઓ છે. શ્રી મહાવીર છંધિત પ્રવચન-આગમ સાહિત્યની “પંચાગ'માં મૂળ આગમ પ૨ નર્યુક્ત, ભાષ્ય, ચૂર્ણ, અવચૂર્ણ, ટીડા, વૃત્તિ વગેરે ઉત્પન્ન કરવા ઉપરંત તે આગમને અનુલક્ષીને ધમર્ક ગ્રન્થો તથા સાહિત્ય પ્રદેશોમાં વિહરી છે તે વિષયની કાવ્ય, भाडाव्य, नाट5, 5था, बाजरी, व्यारा, 5६, डोष ज्योतिष, न्याय, तई આદ áવધ વિષયોની કૃતિઓના ચર્ચાયતા, સંસારત્યાગ કરી શ્રમણ દીક્ષા લઈ ધમોપદેશક તરીકે સ્થાને સ્થાને વિહા૨ ઠ૨ના૨ આચાર્ય ભગવંતો અને તેમની શિષ્ય પરંપરા જ છે. જેનો ઉપકાર ક્યારેય કયાંય ભૂલી શકાય જ નહિ. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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