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________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन घ. अभिधान राजेन्द्र कोश : सन्तों की दृष्टि में: राजेन्द्र कोश एक अक्षयनिधि है। संसार का एक अनुपम तथा अनूठा साहित्यिक ग्रंथ है। जैन धर्म या दर्शन विषयक किसी भी अनुसंधान के निमित्त 'अभिधान राजेन्द्र' एक अनिवार्यता है । - भट्टारक देवेन्द्रकीति एवं चारुकीर्ति जैन संस्कृति के आधार ग्रंथ आगम हैं, बौद्ध संस्कृति के त्रिपिटक एवं वैदिक संस्कृति के आधार ग्रंथ वेद हैं। प्रस्तुत 'अभिधान राजेन्द्र कोश' नामक महाग्रंथ आगम ग्रंथों को आधार मानकर ही बनाया गया है। आगमों के साथ-साथ इस कोश में नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, टीका आदि व्याख्या ग्रंथ भी ले लिये गये हैं। कहना चाहिए, समग्र जैन संस्कृति और जैन वाङ्मय को बृहदाकार सात मंजूषाओं में सुरक्षित कर दिया गया हैं । ...विश्व भाषाओं में भारोपीय परिवार में प्राकृत भाषा की पारिवारिक भाषा ही मागधी है, जिस पर कि 'अभिधान राजेन्द्र' महाकोश बना है। मागधी प्राचीन युग में मात्र लोकभाषा थी, पर सांस्कृतिक एवं दार्शनिक गौरव पा गयी; क्योंकि भगवान महावीर उस भाषा में बोले । मानना चाहिए कि जैन संस्कृति और मागधी एक-दूसरे की पर्याय बन गयी हैं। इस दृष्टि से अभिधान राजेन्द्र महाकोश कितना महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है जो कि जैन संस्कृति एवं मागधी को एक साथ संजोये चल रहा है। प्रस्तुत कोश में तथारूप समग्र सामग्री संयोजित हो गयी है अतः यह महाग्रंथ एक डिक्शनरी एक कोश ही न रहकर अपने आप में एक अनुपम एवं व्यापक विषय-परक विश्वकोश बन गया है, अर्थात् जैन इन्साइक्लोपीडिया ।..... जिस युग में इसका सृजन हुआ था...... जिसमें इतना बृहद् व मौलिक कार्य महान आचार्य विजय राजेन्द्रसूरि ही कर पाये और उस विधा में आज तक और कोई अन्य आचार्य ऐसा नहीं कर पाया। वे तथा उनके सहयोगी शिष्य युग-युगांतर तक अविस्मरणीय एवं वंदनीय रहेंगें । द्वितीय परिच्छेद ... [59] - मुनिश्री नगराजजी (डी.लीट्) यदि कोई मुझसे पूछे कि जैन साहित्य क्षेत्र में बीसवीं सदी में असाधारण घटना कौन-सी घटी ? तो मैं यही कहूँगा कि वह असाधारण घटना है - 'अभिधान राजेन्द्र' की रचना और उसका प्रकाशन'। महापरिश्रम और महा अर्थसाध्य रचना है यह । आज तो उनकी आकृति अन्तर्देशीय के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय ग्रंथागारों को भी अलंकृत कर रही है। एक ही विषय के बारे में आगमिक और शास्त्रीय जानकारी एक ही स्थान पर विभिन्न रूपों में सरलता और शीघ्रता से प्राप्त करना हो तो एकमात्र इस कोश द्वारा ही वह प्राप्त हो सकती है । इस अनुकूलता के कारण अनेक विद्वान संशोधक इस ग्रंथ से विपुल लाभ उठा रहे हैं। यह ग्रंथ जैनागम कोश स्वरुप है और इसमें समस्त आगमों का व्यवस्थित रुप से संकलन किया है। वर्तमान में अपने विराट प्रयत्न द्वारा अभूतपूर्व सिद्धि संपादन करने का मान जैन साहित्य क्षेत्र में सचमुच आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी ही अपने हक में ले गये, यह कहे बिना रहा नहीं जाता। वे जैन संघ के लिए युग-युग तक अविस्मरणीय भेंट प्रदान कर गये हैं। Jain Education International - - आचार्य यशोदेवसूरि अभिधान राजेन्द्र कोश का निर्माण करके सूरि प्रवर श्री राजेन्द्रसूरि महाराज ने जैन वाङ्मय की उत्कृष्टता एवं गहराई का नाप निकालने के लिये यह एक अति आयत गज ही तैयार किया है। प्राकृत ग्रंथों का अध्ययन करनेवालों के लिए और खासकर जब प्राकृत भाषा का संबंध सहवास, परिचय और गहरा अध्ययन धीरेधीरे घटता - घटता खंडित होता चला हो, तब प्राकृत भाषा के विस्तृत एवं व्यवस्थित शब्दकोश की नितान्त आवश्यकता थी। ऐसे ही युग में श्री राजेन्द्रसूरि महाराज के हृदय में ऐसे विश्वकोश की रचना का जीवन्त संकल्प हुआ। यह उनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा एवं उनके युगपुरुषत्व का एक अनूठा प्रतीक हैं। प्राकृत भाषा में पाइयसद्दमहण्णव, जिनागमशब्दकोश, अल्पपरिचित सैद्धांतिक शब्दकोश, आदि अनेक कोशग्रंथ 'अभिधान राजेन्द्र' के पश्चात् तैयार किये गये, किन्तु इन सब के निर्माण में बीजरूप आदिकरण तो श्री राजेन्द्रसूरि महाराज एवं उनके द्वारा निर्मित 'अभिधान राजेन्द्र कोश' ही है। संभव है कि भविष्य में और भी प्राकृत भाषा के विविध कोशों का निर्माण होता रहे, फिर भी 'अभिधान राजेन्द्रकोश' की महत्ता, व्यापकता एवं उपयोगिता कभी घटने वाली नहीं है, ऐसी ही इस कोश की रचना है। आज के जैन- अजैन, पाश्चात्य - पौर्वात्य विद्वानों के लिए भी यह कोश सिर्फ महत्त्व का शब्दकोश मात्र नहीं, किन्तु महत्त्वपूर्ण महाशास्त्र बन गया है। आगमसेवी मुनिश्री पुण्यविजयजी म. વિશ્વવિખ્યાત ‘શ્રી અભિધાન રાજેન્દ્ર કોશ' સંસારમાં પ્રાપ્ત થતાં કોશો માં વિશેષ મહત્ત્વનો તેમજ અતિવિરાટ કોશ માનવામાં આવે છે વિષયની રીતે તેને પ્રાકૃત, અર્ધમાગધી શબ્દોનો એક મહાસાગર કહેવામાં આવે તો પણ અતિશયોક્તિ નથી. આ કોશની અંદર શબ્દોની વ્યુત્પત્તિ, તદ્વિષયક કલિકાલ સર્વજ્ઞ પૂજ્યપાદ શ્રીમદ્ હેમચન્દ્રાચાર્ય રચિત ‘‘શ્રી સિદ્ધહેમ’’ જૈન વ્યાકરણના આઠમા પ્રાકૃત વિષયક અધ્યાયનું યથાયસ્થાન પુરું દિગ્દર્શન કરાવવામાં આવ્યું છે અને એ પ્રાકૃત શબ્દોને પણ નિયમાનુસાર વ્યાકરણ સૂત્રો દ્વારા સિદ્ધ કરવાનો ઠેર ઠેર નિર્દેશ પ્રયાસ કરવામાં આવ્યો છે જૈનાગમોના પઠનપાઠનમાં તો આ કોશની મહતી ઉપયોગિતા છે. પ્રત્યેક શબ્દ ઉપર તે તે પાઠોમાં પ્રમાણો આપીને તેને લગતી અધ્યયનની પૂરી સામગ્રી સંગ્રહીત કરીને જિજ્ઞાસુઓની સર્વ આકાંક્ષાઓની પૂર્તિ કરવામાં આવી છે. For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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