________________
y.
[56]... द्वितीय परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन क अभिधान राजेन्द्र कोश पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि में:
After 5 years of Abhidhan Rajendra's continuous perusal, I can affirm that no real Indologist can dispense with a copy of this wonderful work. In its special compass, it surpasses even that jewel of lexicography, the Petersburg Dictionary, here we have not only a complete register of words warranted by references and quotations, but a full survey of thoughts, beliefs, legends lying beyond the words whatever is the matter I happen to deals with I begin with consulting my Rajendra & I never fail to get some useful information, shall ever have any thing alive in the field of Brahmanism and Buddhism
-Prof Sylvain Levi (University of Paris) I greatly admire all the work of the Late Rajendra Suri, in Particular his Lexicographical achievement in the "Abhidhana Rajendra Kosha".
- R.L Turner His 'Abhidhan Rajendra Kosha' on ourselves is a standing monument of his scholarship and dynamic literary activity.
- P.K. Gode I wish to say emphatically that in the field of Jainism, no scholar can dispense of consulting the Suri's most valuable magnum opus, the 'Abidhan Rajendra', as the big work was called very appropriately.
-Walther Schubring (Hamburg) यह विश्व कोश एक संदर्भ-ग्रंथ की तरह तथा जैन-प्राकृत के अध्ययन के निमित्त अतीव मूल्यवान है।
- जार्ज ए गियर्सन ख. अभिधान राजेन्द्र कोश : भारतीय विद्वानों की दृष्टि में:
जब विद्यालयों में अच्छे अध्ययन-अध्यापन के लिए 'गोम्मटसार' जैसे पारिभाषिक लाक्षणिक ग्रंथों को चुना जाता है तब इस प्रकार के कोशों की आवश्यकता अधिक अनुभव होती है। बहुतेरे जैन-पारिभाषिक शब्दों के उद्धरण तथा व्याख्याओं के खोजने में रतलाम से प्रकाशित, सात भागों में विभाजित राजेन्द्रसूरि का 'अभिधान राजेन्द्र कोश' उपयोगी सिद्ध हुआ है।
डो. हीरालाल जैन, विश्वविद्यालय, नागपुर
संपादक - धवन, जयधवल, महाधवल अभिधान राजेन्द्र कोश के प्रणेता श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी ने स्वयं ही अपना मार्ग प्रशस्त किया और दूसरों के पथदर्शक बनें। उनका चारित्रिक बल, उनकी विद्वता और निर्भीकता सराहनीय है। उनके विरचित ग्रंथ उनके स्मारक हैं
-साहित्यकार बाबू गुलाबराय, एम.ए.,
संपादक - साहित्य संदेश मेरी राय में 'अभिधान राजेन्द्र' एक विशाल ग्रंथ है जो भारतीय उद्यम और विद्वता का मस्तक ऊंचा करता है।
- प्रो. सिद्धेश्वर वर्मा आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी को प्राकृत-संस्कृत आदि भाषाओं का और व्याकरण, शब्द-शास्त्र व सिद्धांत आदि अनेक विषयों पर उनका गंभीर ज्ञान था। तभी तो वे 'अभिधान राजेन्द्र' जैसे महान ग्रंथ का निर्माण कर पाये, जो उन्हें अमर बनाने के लिये पर्याप्त है।
-अगरचंद नाहटा मेरे धर्ममित्र श्री प्राग्वाट स्वामी के पास 'अभिधान राजेन्द्र' के विशद सात भाग देखकर भारतीय ज्ञान गाम्भीर्य के विद्योदधि श्री राजेन्द्रसूरि जी की इस चमत्कारपूर्ण अद्वितीय सृजन-क्षमता के प्रति सहज ही नतमस्तक हो गया हूँ।
- चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य अभिधान राजेन्द्र कोश के विभिन्न भागों के विहंगावलोकन मात्र से पाठक को जैन धर्म और दर्शन के अपरिहार्य तथ्यों की जानकारी हो जाती है।
- के.ए. धरणैन्दैया राजेन्द्रसूरि द्वारा इतने बड़े ग्रंथ की रचना उनकी तपस्या का ही परिणाम है। तपस्या से ही ज्ञान और तेज का प्रकाश होता है। यह तपस्या हमारे जीवन का अंग बने इसलिए कोश का अध्ययन करें।
___ -श्री वीरेन्द्रदत्त ज्ञानी, न्यायमूर्ति, हाइकोर्ट (इन्दौर) ज्ञान का सूरज हर अंधेरे में उजाला करता है। यह कालजयी ग्रंथ है। आगम धर्म मीमांसा की व्याख्या जो राजेन्द्र कोश में है, अन्य कहीं नहीं है। विसंगतियों को सुलझाने का यह अमृतकोश है।
___ -श्री मुरारीलाल तिवारी
(विशेष अतिथि : द्वितीयावृत्ति लोकार्पण समारोह, इन्दौर) अभिधान राजेन्द्र कोश लगभग एक हजार पृष्ठों के प्रत्येक ऐसे सात भागों में प्रकाशित है, जिसमें अकारादि क्रम में प्राकृत शब्दों के संस्कृत अर्थ-व्युत्पत्ति-लिङ्ग और ससंदर्भ अर्थ, जैन आगम व अन्य ग्रंथों में उपलब्ध सभी के विभिन्न संदर्भो की सामग्री से युक्त इस ग्रंथराज को प्रमाणिक करने का महाभारत प्रयत्न किया गया है। जैनागमों का एसा कोई विषय नहीं है जो इस कोश में प्राप्त नहीं।
-जैन साहित्यनो इतिहास Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org