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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
विज्ञान भिक्षु ने 'योगवार्तिक' में आगम का लक्षण इस प्रकार दिया
आप्तेनेति भ्रमप्रमादविप्रलिप्साकरणापाटवादिदोषरहिते ने त्यर्थः मूलवक्त्रभिप्रायेण श्रुतो वेति। आप्तादागच्छति वृत्तिरित्यागमः ।
अर्थात् भ्रम, प्रमाद, उत्कट लिप्सा, अकुशलतादि दोषों से रहित आप्त पुरुष की वाणी को आगम कहते हैं। आप्त पुरुष से आगत विद्या या प्रमाण आगम है। आगमप्रमाणमूलक ग्रन्थ भी आगम शब्द से व्यवहृत होते
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भोजवृत्ति में कथित है – आप्तवचनं आगमः ।
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1.3 सांख्यदर्शन में आगम-सांख्य दर्शन में तीन प्रमाण स्वीकृत हैं- प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्दप्रमाण । शब्द प्रमाण ही आगम है। सांख्यसूत्र में निर्दिष्ट आप्तोपदेशः शब्दः
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आप्त पुरुषों के द्वारा कथित या प्ररूपित शब्द प्रमाण है। सांख्यकारिका के अनुसार यथार्थ वाक्य जन्य ज्ञान शब्द प्रमाण है
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आप्तश्रुतिराप्तवचनं तु ।
ब्रह्मादि आचार्यों के वचन एवं वेदवचन को आप्तवचन कहा गया है। क्योंकि इनसे साक्षादर्थ अथवा यथार्थ की उपलब्धि होती है। (द्रष्टव्य माठरवृत्तिः) माठरवृत्तिकार ने आगम के स्वरूप को उद्घाटित करने के लिए भगवान कपिल के वचन को उद्धृत किया है
आगमो ह्याप्तवचनमाप्तं दोषक्षयाद् विदुः । क्षीणदोषोऽनृतं वाक्यं न ब्रूयाद्धेत्वसम्भवात् । स्वकर्मण्यभियुक्तो यो रागद्वेषविवर्जितः ।
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पूजितस्तद्विधैर्नित्यमाप्तो ज्ञेयः स तादृशः । ।
अर्थात् आप्तवचन को आगम कहते हैं । दोषों से जो शून्य हो उसको आप्त कहते हैं, क्योंकि दोषशून्य व्यक्ति झूठ नहीं बोल सकता। जो अपने कर्म में तत्पर हो, राग द्वेष रहित हो, ऐसे ही लोगों से सम्मानित हो उसे आप्त कहते हैं ।
सांख्यतत्त्वकौमुदी में वाचस्पतिमिश्र ने लिखा है- आप्ता प्राप्ता युक्तेति यावत् । आप्ता चासौ श्रुतिश्चेत्याप्तश्रुतिः, श्रुतिवाक्यजनितं वाक्यार्थं ज्ञानम् ।
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अर्थात् साक्षात्कृतधर्मापुरुष, यथार्थ के ग्रहणकर्ता तथा उपदेष्टा को आप्त कहते हैं, उन्हीं का वचन आप्तवचन है। श्रुति वाक्य आप्त वचन है। सांख्यतत्त्व याथार्थ्यदीपन में शब्द (आगम) प्रमाण की व्याख्या की
गई है।
1. आप्तवचनजन्यज्ञानं शब्दः प्रमा तत्करणं शब्दप्रमाणमित्येकं लक्षणम्,
2. आप्तवचनजन्या पदार्थसंसर्गाकारान्तःकरणवृत्तिरिति द्वितीयं शब्दप्रमाणम्,
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