________________
44
जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक माथुरी वाचना में जो आगमों का स्वरूप तय हुआ था, उस पर व्यापक रूप से शौरसेनी का प्रभाव आ गया था। दुर्भाग्य से आज हमें माथुरी वाचना के आगम उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु उन आगमों के जो उद्धृत अंश उत्तर भारत की अचेल धारा यापनीय संघ के ग्रन्थों में और टीकाओं में उद्धृत मिलते हैं, उनमें हम यह पाते हैं कि भावगत समानता के होते हुए भी शब्दरूपों और भाषिक स्वरूप में भिन्नता है। आचारांग उत्तराध्ययन, निशीथ, कल्प, व्यवहार आदि से जो अंश भगवती आराधना की टीका में उद्धृत हैं वे अपने भाषिक स्वरूप और पाठभेद की अपेक्षा से वल्लभी के आगमों से किंचित भिन्न हैं। फिर भी देवर्द्धि को जो आगम-परम्परा से प्राप्त थे, उनका और माथुरी वाचना के आगमों का मूलस्रोत तो एक ही था। हो सकता है कि कालक्रम में भाषा एवं विषयवस्तु की अपेक्षा दोनों में क्वचित् अन्तर आ गये हों । अतः यह दृष्टिकोण भी समुचित नहीं होगा कि देवर्द्धि की वल्लभी वाचना के आगम माथुरी वाचना के आगमों से नितान्त भिन्न थे ।
Jain Education International
-सचिव, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी सागर टेण्ट हाउस, नई सड़क, शाजापुर (म. प्र. )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org