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________________ massampramane MELATE आचार्य कुन्दकुन्द और उनकी कृतियाँ हा कया111 समितियों एवं तीन गुप्तियों का निरूपण है। पंचमाधिकार में आत्मा के माध्यस्थभाव एवं प्रतिक्रमण की चर्चा है। वस्तुत: आत्माराधन ही परमार्थ प्रतिक्रमण है। आगे के दोनों अधिकारों में ध्यान का निरूपण है। वस्तुत: ध्यान ही सर्व अतिचार का अतिक्रमण है। समस्त वचनों को छोड़कर तथा अनागत शुभाशुभ का निवारण करके जो आत्मा का ध्यान है वही प्रत्याख्यान है। शुद्धनिश्चयप्रायश्चित्ताधिकार एवं परम समाधि अधिकार में आत्मा-ध्यान एवं ध्याता-ध्येय की एकरूपता का विवेचन है। परम भक्ति-अधिकार में आत्मा को आत्मा के साथ योग का निरूपण है। काम क्रोधादि से रहित सदा आत्मभाव में रहने वाला ही भक्त निश्चयपरमावश्यकाधिकार एवं शुद्धोपयोगाधिकार में भी आत्मा के स्व परभव एवं निर्वाण का वर्णन है। इस प्रकार सम्पूर्ण नियमसार में सम्यग्दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र रूप नियम तथा शुद्धभाव में स्थित आत्मा की आराधना का निरूपण है। शुद्धात्मा ही आराध्य है इसके श्रद्धान, ज्ञान एवं ध्यानरूप परिणितियाँ साधन हैं। अष्टपाहुड- प्रवचनसार एवं नियमसार के समान अष्टपाहुड भी कुन्दकुन्द के प्रमुख ग्रन्थों में है। अष्ट पाहुड में आठ पाहुड हैं, जिनमें पाहुड के नाम के अनुरूप ही विषयों का निरूपण है, यथा1. दर्शनपाहुड- इसमें सम्यग्दर्शन का निरूपण है। दर्शन के भेद, सम्यक्त्व के गुण एवं इनका प्रशमादि चिह्नों में अन्तर्भाव किया गया है। सम्यग्दृष्टि का लक्षण देते हुए मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन का महत्त्व बतलाया गया है। 2. सूत्रपाहुड-इसमें श्रुतज्ञान के महत्त्व एवं सूत्रों की उपादेयता का निरूपण है। द्वादशांग एवं अंगबाह्य रूप श्रुत का वर्णन है। सूत्र के अर्थ को जानने वाला सम्यग्दृष्टि है एवं सूत्र के अर्थ व पद से भ्रष्ट मिथ्यादृष्टि है। 3. चारित्र पाहुड- सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय का निरूपण करते हुए चारित्र के सम्यक्त्व का वर्णन है। सम्यक् चारित्र के दो भेद हैं- सम्यक्त्व चरण एवं संयम चरण। इनके भेदोपभेदों का विस्तृत वर्णन इस पाहुड में किया गया है। अन्त में निश्चय चारित्र रूप ज्ञानधारकों की सिद्धि का वर्णन है। 4. बोधपाहुड-इसमें आयतन-त्रय का लक्षण, चैत्यगृह, जिनप्रतिमा, जिनबिम्ब, जिनदर्शन, जिनमुद्रा, आत्मज्ञान, देव, तीर्थ, अर्हन्त, प्रव्रज्या आदि का ज्ञान दिया गया है। 5. भावपाहुड- चित्त शुद्धि के बिना तप भी सिद्धि में सहायक नहीं है। इस पाहुड में सांसारिक गतियों के दुःखों का वर्णन एवं विविध मुनियों की कथाओं द्वारा चित्त शुद्धि की महत्ता का निरूपण है। भावपाहुड को पढ़ने एवं 'सुनने मात्र से मोक्ष-प्राप्ति का कथन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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