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का जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषांक सत्ता कहते हैं। यही द्रव्य का लक्षण है। यह प्रथम खण्ड ही प्रथम अधिकार भी है। दूसरे खण्ड में जीव अजीव के पर्याय रूप नव पदार्थों का निरूपण है। इसी खण्ड को जयसेनाचार्य ने द्वितीय एवं तृतीय अधिकारों में विभाजित किया है। द्वितीय अधिकार में जीव-अजीव एवं इनके संयोग से निष्पन्न होने वाले सात पदार्थो का निरूपण है। तृतीय अधिकार में स्वसमय, परसमय एवं मोक्षमार्ग का निरूपण है। कुन्दकुन्द ने पर के प्रति राग का सर्वथा निषेध इस ग्रन्थ में किया है
सपयत्थं तित्थयरं अभिगदबुद्धिस्स सुत्तरोइस्स।
दूरतरं णिव्वाणं संजमतवसंपउत्तस्स।। पर के प्रति किंचित् मात्र भी अनुराग, यहां तक कि तीर्थकर देव के प्रति किया गया भी अनुराग मोक्ष से दूर रखता है। अत:मोक्षमार्गी को राग से दूर रहना चाहिए।
तम्हा णिव्वुदिकामो रागं सव्वत्थ कुणउ मा किंचि।
सो तेण वीदरागो भविओ भवसायरं तरदि।। अर्थात् जिसका किंचित् मात्र भी राग नहीं है वह वीतराग भवसागर से तर जाता है।
पंचास्तिकाय को आधार मानकर अनेक ग्रन्थ लिखे गए। जिनमें द्रव्यसंग्रह प्रमुख है। प्रवचनसार, नियमसार, समयसार आदि ग्रन्थों को समझने के लिए पंचास्तिकाय का अध्ययन जरूरी है।। नियमसार- इस ग्रन्थ में नियम (मोक्षमार्ग) एवं नियम फल (मोक्ष) का निरूपण है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र ही नियम अथवा मोक्षमार्ग है। सम्यक् चारित्र व्यवहार एवं निश्चय से दो प्रकार का है। इनमें निश्चय चारित्र ही मोक्षमार्ग है। वस्तुत: उस परमागम की रचना कुन्दकुन्द ने स्वान्तः सुखाय की है, जैसा कि इस गाथा से स्पष्ट है
णियभावणिमित्त मए कदं णियमसारणामसुदं। __णच्चा जिणोवदेसं पुव्वावरदोसणिम्मुक्कं ।। नियमसार में सम्पूर्ण विषयवस्तु को १८७ गाथाओं में बारह भागों में विभाजित किया गया है- १. जीवाधिकार २. अजीवाधिकार ३. शुद्धभावाधिकार ४.व्यवहारचारित्राधिकार ५.परमार्थप्रतिक्रमणाधिकार ६. निश्चय प्रत्याख्यानाधिकार ७. परमालोचनाधिकार ८. शुद्धनिश्चयप्रायश्चित्ताधिकार ९. परमसमाधिअधिकार १०.परमभक्ति अधिकार ११.निश्चय-परमावश्यकाधिकार १२.शुद्धोपयोगाधिकार।
_प्रथम अधिकार में मंगलपाठ, ग्रन्थ प्रतिज्ञा, प्रतिपाद्य के पश्चात् 'नियमसार' नाम की सार्थकता का प्रतिपादन है, तदनन्तर मोक्षमार्ग या नियम की चर्चा है।
द्वितीयाधिकार में पाँच अजीव द्रव्यों का व तृतीयाधिकार में आत्मा के स्वपरभाव का विवेचन है। व्यवहारचारित्राधिकार में पाँच व्रतों, पाँच
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