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जाने लगे।
द्वितीय वाचना
आगमों की द्वितीय वाचना ई.पू. द्वितीय शताब्दी में महावीर के निर्वाण के लगभग ३०० वर्ष पश्चात् उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर सम्राट् खारवेल के काल में हुई थी। इस वाचना के संदर्भ में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है- - मात्र यही ज्ञात होता है कि इसमें श्रुत के संरक्षण का प्रयत्न हुआ था । वस्तुत: उस युग में आगमों के अध्ययन-अध्यापन की परम्परा गुरु-शिष्य के माध्यम से मौखिक रूप में ही चलती थी । अत: देशकालगत प्रभावों तथा विस्मृति-दोष के कारण उसमें स्वाभाविक रूप से भिन्नता आ जाती थी । अतः वाचनाओं के माध्यम से उनके भाषायी स्वरूप तथा पाठभेद को सुव्यवस्थित किया जाता था। कालक्रम में जो स्थविरों के द्वारा नवीन ग्रन्थों की रचना होती थी, उस पर भी विचार करके उन्हें इन्हीं वाचनाओं में मान्यता प्रदान की जाती थी। इसी प्रकार परिस्थितिवश आचार-नियमों में एवं उनके आगमिक संदर्भों की व्याख्या में जो अन्तर आ जाता था, उसका निराकरण भी इन्हीं वाचनाओं में किया जाता था । खण्डगिरि पर हुई इस द्वितीय वाचना में ऐसे किन विवादों का समाधान खोजा गया था- इसकी प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
तृतीय वाचना
आगमों की तृतीय वाचना वी. नि. संवत् ८२७ अर्थात् ई. सन् की तीसरी शताब्दी में मथुरा में आर्य स्कंदिल के नेतृत्व में हुईं। इसलिए इसे माथुरी वाचना या स्कन्दिली वाचना के नाम से भी जाना जाता है। माथुरी वाचना के संदर्भ में दो प्रकार की मान्यताएँ नन्दीचूर्णि में हैं। प्रथम मान्यता के अनुसार दुर्भिक्ष के अनन्तर सुकाल होने के पश्चात् आर्य स्कन्दिल की अध्यक्षता में शेष रहे मुनियों की स्मृति के आधार पर कालिकसूत्रों को सुव्यवस्थित किया गया है। अन्य कुछ का मन्तव्य यह है कि इस काल में सूत्र नष्ट नहीं हुआ था, किन्तु अनुयोगधर स्वर्गवासी हो गये थे । अत: एक मात्र जीवित स्कन्दिल ने अनुयोगों का पुनः प्रवर्तन किया । चतुर्थ वाचना
चतुर्थ वाचना तृतीय वाचना के समकालीन ही है। जिस समय उत्तर, पूर्व और मध्य क्षेत्र में विचरण करने वाला मुनिसंघ मथुरा में एकत्रित हुआ, उसी समय दक्षिण-पश्चिम में विचरण करने वाला मुनिसंघ वल्लभी (सौराष्ट्र) में आर्य नागार्जुन के नेतृत्व में एकत्रित हुआ । इसे नागार्जुनीय वाचना भी कहते हैं। I
आर्य स्कन्दिल की माथुरी वाचना और आर्य नागार्जुन की वल्लभी वाचना समकालिक हैं। नन्दीसूत्र स्थविरावली में आर्य स्कन्दिल और नागार्जुन के मध्य आर्य हिमवन्त का उल्लेख है । इससे यह फलित होता है
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