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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङका वीरसेनस्वामी ने सत्कर्मान्तर्गत शेष १८ अनुयोगद्वारों (निबन्धन, प्रक्रम आदि) की विस्तृत विवेचना की है।
इस तरह १६ पुस्तकों में धवला टीका सानुवाद पूरी होती है। धवला की १६ पुस्तकें, जयधवला की १६ पुस्तकें और महाधवल की ७ पुस्तकेंकुल मिलाकर ३९ पुस्तकें तथा इनके कुल पृष्ठ १६३४१ प्रामाणिक जिनागम हैं। केवली की वाणी द्वारा निबद्ध द्वादशांग से इनका सीधा संबंध होने से षट्खण्डागम अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थराज है, यह निर्विवाद सिद्ध है।
___ (स्रोत–प्रस्तुत संक्षिप्त परिचय श्री नीरज जैन की पुस्तक 'षट्खण्डागम की अवतरण कथा' तथा पं. जवाहरलाल शास्त्री की पुस्तक 'धवल जयधवलसार' से संकलित किया गया है।)
___ -सहआचार्य, हिन्दी-विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
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