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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक ।
(३)चूणि साहित्य आगमों के ऊपर लिखे हुए व्याख्या-साहित्य में चूर्णियों का स्थान बहुत महत्त्व का है। चूर्णियां गद्य में लिखी गई हैं। चूर्णियां केवल प्राकृत में ही न लिखी जाकर संस्कृत मिश्रित प्राकृत में लिखी गई थीं, इसलिए भी इस साहित्य का क्षेत्र नियुक्ति और भाष्य की अपेक्षा अधिक विस्तृत था। चूर्णियों में प्राकृत की प्रधानता होने के कारण इसकी भाषा को मिश्र प्राकृत भाषा कहना सर्वथा उचित ही है। निशीथ के विशेषचूर्णिकार ने चूर्णि की निम्नलिखित परिभाषा दी है
पागडो ति प्राकृतः प्रगटो वा पदार्थो वस्तुभावो यत्र सः,
तथा परिभाष्यते अर्थोऽनयेति परिभाषा चूर्णिरुच्यते। अभिधानराजेन्द्रकोश में चूर्णि की परिभाषा देखिए
अत्थबहुलं महत्थं हेउनिवाओवसग्गगम्भीरं ।
बहुपायमवोच्छिन्नं गमणयसुद्धं तु चुण्णपयं ।। अर्थात् जिसमें अर्थ की बहुलता हो, महान अर्थ हो, हेतु, निपात और उपसर्ग से जो युक्त हो, गम्भीर हो, अनेक पदों से संबंधित हो, जिसमें अनेक गम(जानने के उपाय) हों और जो नयों से शुद्ध हो, उसे चूर्णिपद समझना चाहिए।
चूर्णियों में प्राकृत की लौकिक, धार्मिक अनेक कथाएं उपलब्ध हैं, प्राकृत भाषा में शब्दों की व्युत्पत्ति मिलती है तथा संस्कृत और प्राकृत के अनेक पद्य उद्धृत हैं। चूर्णियों में निशीथ की विशेषचूर्णि तथा आवश्यकचूर्णि का स्थान बहुत महत्त्व का है। इसमें जैन पुरातत्त्व से संबंध रखने वाली विपुल सामग्री मिलती है। लोककथा और भाषाशास्त्र की दृष्टि से यह साहित्य अत्यन्त उपयोगी है। वाणिज्यकुलीन कोटिगणीय वज्रशाखीय जिनदासगणि महत्तर अधिकांश चूर्णियों के कर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका समय ईस्वी सन् की छठी शताब्दी के आसपास माना जाता है। निम्नलिखित आगमों पर चूर्णियां उपलब्ध हैं- आचारांग, सूत्रकृतांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, कल्प, व्यवहार, निशीथ, पंचकल्प, दशाश्रुतस्कन्ध, जीतकल्प, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक, नन्दी
और अनुयोगद्वार। आचारांगचूर्णि- नियुक्ति-गाथाओं के आधार पर यह चूर्णि लिखी गई है। अत: यहां उन्हीं विषयों का विवेचन किया गया है, जिनका प्ररूपण आचारांग नियुक्ति में उपलब्ध है। परम्परा से आचारांगचूर्णि के कर्ता जिनदासगणि महत्तर माने जाते हैं। यहां अनेक स्थलों पर नागार्जुनीय वाचना के साक्षीपूर्वक पाठभेद प्रस्तुत करते हुए उनकी व्याख्या की गई है। बीच-बीच में संस्कृत
और प्राकृत के अनेक लौकिक पद्य उद्धृत हैं। प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करने के लिए एक विशिष्ट शैली अपनाई गई है।
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