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१० . वीरत्थव
(३५)
वीरस्तव
४३ गाथाओं में रचित इस वीरस्तव प्रकीर्णक में महावीर की स्तुति उनके छब्बीस नामों द्वारा की गई है। इसमें २६ नामों का अलग-अलग अन्वयार्थ भी बताया गया है। प्रथम गाथा मंगल और अभिधेय रूप है, तदुपरान्त महावीर के निम्न २६ नामों का उल्लेख है
(१) अरूह
(२)
अरिहंत
(३)
अरहंत
(४)
(4)
जिण
(६)
(७)
(८)
(१०) पारग
(१२) नाथ
१.
-:
२.
परमकारुणिक
सर्वदर्शी
त्रिकालविद्
जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
(९)
(११)
(१३) वीतराग
(१५) त्रिभुवनगुरु (१७) त्रिभुवन वरिष्ठ
(१९) तीर्थंकर
(२१) जिनेन्द्र
(२३) हरि
(२४) हर
(२५) कमलासन और
(२६) बुद्ध
वर्द्धमान महावीर के २६०० वें जन्म महोत्सव के उपलक्ष्य में जैन आगम-परिचय के प्रसंग में प्रमुख प्रकीर्णकों का परिचय प्रस्तुत किया गया है । शेष प्रकीर्णकों हेतु उदयपुर आगम संस्थान ग्रन्थमाला के अन्य प्रकाशन अवलोकनीय हैं। मरणविभत्तिपइण्णयं का अनुवाद एवं सम्पादन इस लेख की लेखिका द्वारा किया जा रहा है।
देव
वीर
सर्वज्ञ
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(१४) केवली
(१६) सर्व
प्रकीर्णकों में प्राय: एक सुसंहत विषय का निरूपण है, अत: इनका स्वाध्याय उपयोगी होगा। प्रकीर्णकों की गाथाओं के सन्दर्भ अंगों में, अंग बाह्य आगमों में, श्वेताम्बर या दिगम्बर सर्वमान्य प्राचीन श्रेण्य ग्रन्थों व शास्त्रों में, व्याख्या-साहित्य में, जैनेतर ग्रन्थों आदि में उपलब्ध होने से प्रकीर्णक साहित्य विभिन्न सम्प्रदायों, आम्नायों, विचार-धाराओं को एक सूत्र में पिरोने में सहायक सिद्ध होंगे।
(१८) भगवान्
(२०) शक्रनमस्कृत (२२) वर्द्धमान
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संदर्भ
न दिसूत्र चूर्णि (सम्पा.) मुनि पुण्यविजय, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद, १९६६, पृ. ६०
नंदिसूत्र; (सम्पा.) मुनिमधुकर, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, सूत्र ८१, पृ. १६३
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