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- जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क | (दोष लगने पर आलोचना करके उचित दण्ड लेकर संयमी-जीवन की शुद्धि करना)। छेद सूत्र संक्षिप्त शैली में लिखे गये हैं। इनके कर्त्ता चतुर्दश पूर्वधारी भद्रबाहु माने जाते हैं।
व्यवहार सूत्र तृतीय छेद सूत्र है। व्यवहार सूत्र को द्वादशांग का नवनीत कहा जाता है। इसके दसवें उद्देशक के तीसरे सूत्र में पांच व्यवहारों के नाम हैं। इस सूत्र का नामकरण इन पांच व्यवहारों को मुख्य मानकर किया गया है। व्यवहार सूत्र, निशीथ की अपेक्षा छोटा एवं बृहत्कल्प की अपेक्षा बड़ा है। चार छेद सूत्रों में यही एक ऐसा सूत्र है जिसके नाम में प्रारम्भ से लेकर आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। अन्य छेद सूत्रों की भांति इसमें भी श्रमण जीवन की आचार संहिता का वर्णन किया गया है। बृहत्कल्प एवं व्यवहार इन दोनों सूत्रों को एक-दूसरे का पूरक माना जाता है।
'व्यवहार' शब्द 'वि' एवं 'अव' उपसर्ग पूर्वक 'ह' धातु से 'घञ्' प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है। 'वि' उपसर्ग विविधता का सूचक है, 'अव' संदेह का। ह धातु से घञ् प्रत्यय करने पर 'हार' शब्द बनता है। जो हरण क्रिया का सूचक है अत: व्यवहार का अर्थ हुआ जिससे विविधसंशयों का हरण होता है वह व्यवहार है
नाना संदेहहरणाद् व्यवहार इति स्थिति:- कात्यायन। ‘ववहार सुत्तं (मुनि कन्हैयालाल 'कमल') में व्यवहार सूत्र के तीन प्रमुख विषय बताये गये हैं- व्यवहार, व्यवहारी एवं व्यवहर्तव्य। दसवें उद्देशक में वर्णित पांच व्यवहार साधन हैं, शुद्धि करने वाले आचार्यादि पदवीधर व्यवहारी और निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियाँ व्यवहर्तव्य (व्यवहार करने योग्य) हैं। व्यवहार की लौकिक एवं लोकोत्तर ये दो व्याख्याएँ की गई हैं। लौकिक व्याख्या में पुन: दो भेद किये गए हैं- सामान्य एवं विशेष। दूसरे के साथ किया जाने वाला व्यवहार सामान्य है और अपराध करने पर राज्य शासन द्वारा उचित दण्ड का निर्णय करना अर्थात् न्याय 'विशेष' है। लोकोत्तर व्याख्या भी दो प्रकार की है सामान्य एवं विशेष। एक गण का दूसरे गण के साथ किया जाने वाला व्यवहार ‘सामान्य' है और सर्वज्ञ द्वारा कथित विधि से तप आदि अनुष्ठान का वपन एवं उससे अतिचार जन्य पाप का हरण 'विशेष' व्यवहार है (व्यवहार भाष्य पीठिका गाथा ४)
व्यवहार के विधि एवं अविधि के भेद से दो प्रकार हैं। अविधि व्यवहार मोक्ष का विरोधी है और विधि व्यवहार मोक्ष का सहयोगी। अत: सूत्र का विषय विधि व्यवहार है। (व्यवहार भाष्य पीठिका गाथा ६)
__ व्यवहार सूत्र में १० उद्देशक हैं। ३७३ अनुष्टुप् श्लोक परिमाण वर्तमान में उपलब्ध मूल पाठ है। १० उद्देशकों में सूत्र संख्या क्रमश: इस प्रकार है
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