________________
दशाश्रुतस्कन्धसूत्र
3971 द्वितीय दशा
शबल, प्रबल, ठोस, भारी, विशेष बलवान आदि लगभग एकार्थक शब्द हैं। संयम के शबल दोषों का अर्थ है- सामान्य दोषों की अपेक्षा बड़े दोष या विशेष दोष। ये दोष संयम के अनाचार रूप होते हैं। इनका प्रायश्चित्त भी गुरुतर होता है तथा ये संयम में विशेष असमाधि उत्पन्न करने वाले हैं। शबल दोष संयम में बड़े अपराध हैं और असमाधि संयम में छोटे अपराध हैं। दूसरी दशा में प्रतिपादित इक्कीस शबल दोष निम्नप्रकार हैं
१. हस्तकर्म २. मैथुन सेवन ३. रात्रि भोजन ४. साधु के निमित्त से बने आधाकर्मी आहार-पानी आदि का ग्रहण ५. राजप्रासाद में गोचरी ६. सामान्य साधु-साध्वियों के निमित्त बने उद्देशक आहार आदि लेना या साधु के लिए क्रयादि क्रिया उद्देशक आहार आदि लेना या साधु के लिए क्रयादि क्रिया हो ऐसे आहारादि पदार्थ लेना ७. बार-बार तप-त्याग आदि का भंग करना ८. बार-बार गण का त्याग और स्वीकार ९ एवं १९ घुटने (जानु) पर्यन्त जल में एक मास में तीन बार या वर्ष में १० बार चलना अर्थात् आठ महीने के आठ और एक अधिक कुल ९ बार उतरने पर शबल दोष नहीं है। १०एवं २०. एक मास में तीन बार और वर्ष में १० बार (उपाश्रय के लिए) माया कपट करना। ११. शय्यातर पिण्ड ग्रहण करना १२-१४. जानकर संकल्पपूर्वक हिंसा करना, झूठ बोलना, अदत्तग्रहण करना १५–१७. त्रस स्थावर जीव युक्त अथवा सचित्त स्थान पर या उसके अत्यधिक निकट बैठना, सोना, खड़े रहना। १८. जानकर सचित्त हरी वनस्पति(१ . मूल २. कन्द ३. स्कन्ध ४. छाल ५. कोंपल ६. पत्र ७. पुष्प ८. फल ९. बीज और १०. हरी वनस्पति खाना २१..जानकर सचित्त जल के लेप युक्त हाथ या बर्तन से गोचरी लेना।
यद्यपि अतिचार-अनाचार अन्य अनेक हो सकते हैं, फिर भी यहां अपेक्षा से २० असमाधि स्थान और २१ शबल दोष कहे गए हैं। अन्य दोषों को यथायोग्य विवेक से इन्हीं में अन्तर्भावित कर लेना चाहिए। तृतीय दशा
___ आशातना की परिभाषा इस प्रकार है- देव गुरु की विनय भक्ति न करना, अविनय-अभक्ति करना, उनकी आज्ञा भंग करना या निन्दा करना, धर्म सिद्धान्तों की अवहेलना करना या विपरीत प्ररूपणा करना और किसी भी प्राणी के प्रति अप्रिय व्यवहार करना, उसकी निन्दा, तिरस्कार करना 'आशातना' है। प्रस्तुत दशा में केवल गुरु-रत्नाधिक (श्रेष्ठ) की आशातना के विषयों का ही कथन किया गया है।
श्रेष्ठ जनों के साथ चलने, बैठने, खड़े रहने, आहार, विहार, निहार संबंधी समाचारी के कर्त्तव्यों में, बोलने, शिष्टाचार, भाव और आज्ञापालन में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org