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अनुयोगद्वार सूत्र
डॉ प्रिया जैन अनुयोगद्वारसूत्र की गणना मूल सूत्रों में होती है। इसे चूलिका सूत्र भी कहा गया है, जिसे आधुनिक भाषा में परिशिष्ट कहा जा सकता है। आर्यरक्षित द्वारा निर्मित यह
आगम आगमों एवं टीकाग्रन्थों की शैली का प्रतिपादन करता है। इस शैली का उपयोग दिगम्बर ग्रन्थ षटखण्डागम की धवला टीका में भी दृष्टिगोचर होता है। मद्रास विश्वविद्यालय में जैन धर्म-दर्शन की अतिथि प्राध्यापक डॉ. प्रिया जैन ने अनुयोगद्वार सूत्र की विषयवस्तु को संक्षेप में प्रस्तुत किया है।- सम्पादक
जिनत्व का प्रकाश और जैनत्व का आधार स्रोत है जैनागम। सद्धर्म, दर्शन, संस्कार और संस्कृति का निर्झर है जैनागम। अज्ञान तिमिर दूर हटा, ज्ञान का आलोक फैलाता है जैनागम। श्रतज्ञान की अक्षण्ण धारा का अपर नाम है जैनागम। सभ्यता एवं आध्यात्मिकता की अनुपम निधि है जैनागम। स्व का परिचय, पर का विवेक कराता है जैनागम। सत्यं, शिवं, सुन्दरम् का साकार रूप है जैनागम। सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग प्रभु के हस्ताक्षर है जैनागम। आत्मज्ञान, वीतराग विज्ञान का अक्षुण्ण भंडार है जैनागम। श्रतगागर में मोक्षसागर को समेटे है जैनागम। अनन्त काल तक आनन्द बरसाता है जैनागम। जन्म, जरा, मरण के महासिन्धु से पार उतारता है जैनागम। अणु और ब्रह्माण्ड के रहस्य खोलता है जैनागम।
आत्मज्ञान, आत्मदर्शन, आत्मरमण का प्रेरणा-स्रोत है जैनागम।
जैनागम सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग प्रभु की वाणी है जो कि भारतीय साहित्य की अनुपम एवं अमूल्य धरोहर है। इनके अध्ययन के बिना भारतीय इतिहास का सही चित्रण व संस्कृति का सम्यक मूल्यांकन असंभव है। तत्त्वद्रष्टा, आत्मविजेता वीतराग प्रभु ने आगमों में आत्मा की शाश्वत सत्ता का उद्घोष किया है, अनमोल मनुष्य जन्म को सार्थक करने की प्रेरणा व आत्मशुद्धि का महापथ प्रकाशित किया है। तीर्थकरों द्वारा प्रणीत, गणधरों द्वारा सूत्रबद्ध आगम गणिपिटक या द्वादशांगी के नाम से अभिहित हैं और अंग बाह्य आगमों में उपांग, मूल, छेद आदि सूत्र समाहित हैं। भगवान महावीर के अंतिम उपदेश रूप उत्तराध्ययन सूत्र, पुत्र मनक के लिये शय्यंभव द्वारा कृत दशवैकालिक सूत्र , देववाचक कृत नन्दीसूत्र एवं आर्य रक्षित द्वारा रचित अनुयोगद्वार सूत्र ये चार मूल सूत्र कहे जाते हैं। अनुयोग द्वार सूत्र को चूलिका सूत्र होने से आगम परिशिष्ट भी कहा जा सकता है। सूत्रकृतांग, प्रज्ञापना, स्थानांग, समवायांग की तरह अनुयोगद्वार सूत्र में दार्शनिक विषयों का तलस्पर्शी विवेचन मिलता है। जैसे पांच ज्ञानरूप नन्दी मंगलस्वरूप है वैसे ही अनुयोगद्वार सूत्र समस्त आगमों और उनकी व्याख्याओं को समझने में कुंजी सदृश है। जैसे एक भव्य मंदिर शिखर से अधिक शोभा प्राप्त करता
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