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________________ नन्दीसूत्र और उसकी महत्ता 379 नन्दीसूत्र पर टीकाएँ नन्दीसूत्र पर प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, गुजराती ऐसी चार भाषाओं में टीकाएँ उपलब्ध हैं। इनमें प्रथम टीका जो चूर्णि कहलाती है, वह जिनदासगणि महत्तरकृत प्राकृत भाषा में है। दूसरी टीका श्री हरिभद्रसूरिकृत संस्कृत भाषा में है। यह टीका बहुत अच्छी है। प्राय: चूर्णि के आदर्श पर निर्माण की गई मालूम होती है। तीसरी श्रीमलयगिरि टीका है। इसमें मलयगिरि आचार्यकृत विस्तृत विवेचन है। चौथी गुजराती बालावबोध नाम की टीका रायबहादुर धनपतिसिंह जी की तरफ से प्रकाशित है। पाँचवी पूज्य श्री अमोलकऋषिकृत हिन्दी अनुवाद है। सभी मूल के साथ मुद्रित हैं। शास्त्रान्तर के साथ नन्दीसूत्र का भेद जब हम नन्दीसूत्र के विषय को अन्य शास्त्रों में देखते हैं, तब उनमें कहीं कहीं भेद भी मिलता है, जिसमें कुछ भेद तो विशेषतादर्शक है और कुछ मतभेदसूचक भी। यहां हम उनका संक्षेप में दिग्दर्शन कराते हैं१. अवधिज्ञान के विषय, संस्थान, आभ्यन्तर और बाह्य तथा देशावधि, सर्वावधि आदि विचार पन्नवणा के ३३ वें पद में मिलते हैं। २. मतिसम्पदा के नाम से दशाश्रुतस्कन्ध के चतुर्थ अध्ययन में अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा को क्षिप्र ग्रहण करना १, एक साथ बहुत ग्रहण करना २, अनेक प्रकार से और निश्चल रूप से ग्रहण करना ३-४, बिना किसी के सहारे तथा सन्देहरहित ग्रहण करना ५-६, ये छ: प्रकार हैं, प्रतिपक्ष के ६ प्रकार मिलाने से अवग्रह आदि के १२-१२ भेद होते हैं। ये दोनों भेद विशेषता दर्शक हैं। ३. पाँच ज्ञानों में प्रथम के ३ ज्ञान मिथ्यादृष्टि के लिये मिथ्याज्ञान कहलाते हैं। नन्दीसूत्र में मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान का उल्लेख मिलता है, किन्तु भगवती आदि शास्त्रों में मिथ्यादृष्टि के अवधिज्ञान को भी विभंगज्ञान कहा है। (श.८, उ.२) ४. मतिज्ञान का विषय- नन्दीसूत्र में मतिज्ञान का विषय दिखाते हुए कहा है कि मतिज्ञानी सामान्य रूप से सब द्रव्यों को जानता है किन्तु देखता नहीं। परन्तु भगवती सूत्र के श.८ उ.२ और सूत्र १०२ में कहा है कि "मतिज्ञानी सामान्य रूप से सब द्रव्यों को जानता और देखता है।'' उपर्युक्त दोनों उल्लेखों में महान् भेद दिखता है। भगवती सूत्र में टीकाकार ने इसको वाचनान्तर माना है, उनका वह उल्लेख इस प्रकार है- 'इदं च सूत्रं नन्द्यामिहैव वाचनान्तरे 'न पासइ' इति पाठान्तरेणाधीतम्', दोनों वाचनाओं का टीकाकार ने इस प्रकार समन्वय किया है- 'आदेश' पद का 'श्रुत' अर्थ करके श्रुतज्ञान से उपलब्ध सब द्रव्यों को मतिज्ञानी जानता है, यह भगवती सूत्र का आशय है। नन्दीसूत्र में 'न पासइ' कहने का आशय इस प्रकार है--- आदेश का मतलब है प्रकार। वह सामान्य और विशेष ऐसे दो प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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