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नन्दी सूत्र का वैशिष्ट्य
आचार्यप्रवर श्री आत्माराम जी म.सा. आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज श्री वर्धमान श्रमण संघ के प्रथम आचार्य थे। आप तीव्र मेधाशक्ति के धनी एवं श्रुतपारंगत थे। आप जब उपाध्याय पद को सुशोभित कर रहे थे तब आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज द्वारा संशोधित एवं अनूदित नन्दीसूत्र (सन् १९४२ में सातारा से प्रकाशित) में आपने भूमिका लिखी थी। उसी भूमिका को यहां संकलित किया गया है।
-सम्पादक
इस अनादि संसारचक्र में आत्मा ने अनेक बार जन्म-मरण किए। किन्तु अपने स्वरूप को भुलाकर परगुणों में रत होने से यह जीव दुःखों का ही अनुभव करता रहा। श्रुत, श्रद्धा और संयम से पराङ्मुख होकर पुद्गल द्रव्यों को अपनाता हुआ मनुष्य अपने गुणों को भूल गया। इसी से अज्ञानवश होकर वह शारीरिक व मानसिक दुःखों का अनुभव कर रहा है। उन दुःखों से छूटने के लिए सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन, सम्यक् चारित्र की आराधना ही एकमात्र उपाय है। गणमय होने पर भी ज्ञान द्रव्य को मंगलमय बना देता है। जैसे-पुष्पों की प्रतिष्ठा सुगन्धि से होती है, ठीक इसी प्रकार आत्मद्रव्य की पूजा प्रतिष्ठा ज्ञान से होती है। ज्ञान और नन्दीसूत्र
नन्दीसूत्र में पंचविध ज्ञान का वर्णन किया गया है। यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि ज्ञान शब्द से नन्दी शब्द का क्या संबंध है? विषय तो इसमें ज्ञान का है फिर इसका नाम नन्दी क्यों पड़ गया? इस प्रश्न पर आचार्य श्री मलयगिरिजी ने जो प्रकाश डाला है, वह यों है
_ "अथ नन्दिरिति कः शब्दाऽर्थः? उच्यते-टुनदु समृद्धौ इत्यस्य धातोः "उदितो नम्" इति नमि विहिते नन्दनं नन्दिः-प्रमोदो हर्ष इत्यर्थः । नन्दि हेतुत्वाज ज्ञानपंचकाभिधायकमध्ययनमपि नन्दिः । नन्दन्ति प्राणिनोऽस्मिन् वेति नन्दिः, इदमेव प्रस्तुतमध्ययनम् । आविष्टलिंगत्वाच्चाध्ययनेऽपि प्रवर्तमानस्य नन्दिशब्दस्य पुंस्त्वम् । "इः सर्वधातुभ्यः" इत्यौणादिक इप्रत्ययः । अपरे तु 'नन्दी' इति दीर्घान्तं पठन्ति, ते च "इक कृष्यादिभ्यः" इति सूत्रादिप्रत्ययं समानीय स्त्रीत्वेऽपि वर्तयन्ति।
स च नन्दिश्चतुर्धा-नामनन्दिः, स्थापनानन्दिः, द्रव्यनन्दिः, भावनन्दिश्च।। इस प्रकार नन्दीसूत्र की चूर्णि में भी लिखा है, जैसे कि
"सव्वसुतखंधतादीणं मंगलाधिकारे नंदित्ति वत्तव्वा-णंदणं णंदी, नंदति वा णेण त्ति नंदी, नंदी-पमोदो-हरिसो कंदप्पो इत्यर्थः । तस्स य चउविहो णिक्खेवो, गयाओ णामट्ठवणाओ, दव्वणंदी-जाणगो अणुवउत्तो,
अहवा-जाणग-भविय-सरीर-वतिरित्तो बारसविह तूरसंघातो इमो___ मंमा, मुकुंद, मद्दल, कडम्ब, झल्लरि, हुड्डक्क कंसाला।
काहल, तिलिसा, वंसो. पणवो, संखो य बारसमो।। मावणंदी-गंदिसद्दोवउत्तभावो, अहवा-"इमं पंचविहणाणपरूवगं णंदित्ति अज्झयणं"।
यहाँ पर श्री हरिभद्रसूरि भी इसी प्रकार लिखते हैं। अत: नन्दी शब्द
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