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| दशवैकालिक सूत्र
30 सिद्धान्त का तलस्पर्शी ज्ञानादि पाना उसके लिए असंभव होगा। यह सोचकर उसके अनुग्रह हेतु सूरि ने द्वादशांग गणिपिटक से धर्म का सार निर्मूढ़ (निज्जूढ) किया ऐसा निज्जुति गाथा (७) में विधान है।
अपराह्न में आरंभ किए इस ग्रंथ के १० अध्ययन निबद्ध करते-करते संध्या समय (विकाल) हो गया, इस कारण उसे दशवैकालिक नाम मिला-ऐसा एक मत है। दूसरे मत से १० विकालों(संध्याओं) में इसका अध्ययन संभव होने से यह सार्थक नाम उसे मिला। तीसरा मत कहता है कि दसवां अध्ययन विताल नामक जातिवृत्ति में होने से उसको दशवैतालिक नाम मिला था, जो कि प्राकृत में दसवेयालिय ही होना संभव था।
इसके नामादि संबद्ध एक समस्या और भी है। वह है इसका 'सूत्रग्रंथ' कहलाना। सामान्य संस्कृत परिपाटी में तो
'अल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद् विश्वतोमुखम् ।
अस्तोभमनवद्य च सूत्रं सूत्रविदो विदुः।।" और ऐसे ग्रन्थ प्रायः गद्य में निबद्ध होते हैं-- क्रियापद विरहित लघुतम वाक्यों के रूप में। परन्तु इस ग्रंथ का ८०-८५ प्रतिशत पद्यात्मक है; केवल अध्ययन ४ के प्रारंभ में २३ गद्य खण्ड मिलते हैं जो अधिकतर उत्तराध्ययन सूत्र के कुछ अंशों का अनुसरण करते हैं। (वैसे ही अध्ययन ९ में ७ और पहली चूलिका में १८ गद्यखण्ड मिलते हैं, पर गद्योक्त विषयवस्तु को ही बाद में संक्षेप से पद्य में भी दोहराया गया है-- वैदिक उपनिषदों की तरह।
इन तथ्यों को देखते हुए इस ग्रंथ का सूत्र कहलाना विचित्र सा लगता है। किन्तु विद्वानों का कथन है कि संभवत: विशाल अंग-साहित्य तथा पूर्वो में विस्तार से विद्यमान महावीर स्वामी के उपदेशों के यहाँ सुग्रथित संक्षिप्त रूप में उपस्थित होने से इसकी 'सूत्र' संज्ञा सार्थक है और फिर अनुयोगद्वार ५१ के अनुसार तो जैन परम्परा में सूत्र (सुत्त), श्रुत (सुय), ग्रन्थ(गंथ), सिद्धान्त (सिद्धत), शासन (सासण), आज्ञा (आण), वचन (वयण), उपदेश (उवएस), प्रज्ञापना (पन्नवण) तथा आगम- ये सारे शब्द पर्यायवाची माने गए हैं। अत: दशवैकालिक नामक यह ग्रंथ सूत्र शैली में निबद्ध न होते हुए भी 'सूत्र' कहलाया। कारण, वह एक चतुर्दशपूर्वधर आगमपुरुष की कृति है, अत: एक आगम है, सूत्र है।
जैन आगमों में दशवकालिक सूत्र की गिनती किस रूप या हैसियत में होती है, यह हम पहले देख चुके हैं। कुछ लोग आगमों का विभाजन अर्थागम, सूत्रागम तथा तदुभयागम इस रूप में भी करते हैं और दशवैकालिक सूत्र को बीचवाले स्थान में गिनाते हैं या फिर आचार्य आर्यरक्षित द्वारा कृत चतुर्विध अनुयोग विभाजन की दृष्टि से इसे चरणकरणानयोग में स्थान देते हैं, क्योंकि "चरणं मूलगुणा:... करणं
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