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उत्तराध्ययनसूत्र में विनय का विवेचन
351 रखे हैं---ज्ञानियों का, श्रद्धावानों का और चारित्र आत्माओं का विनय करो। इन तीनों का आदर, सम्मान और विनय करना आवश्यक बताया। विनय के तीन साधन हैं-- मन, वचन और काया। उनके आधार पर मन विनय, वचन विनय एवं काया विनय नाम दिए गए। लोक-व्यवहार की दृष्टि से जो विनय किया जाता है वह लोकोपचार विनय है। यह शिष्टाचार अथवा दूसरों की इच्छा की पूर्ति के लिए भी किया जाता है।
संसार में प्रत्येक प्राणी विनय करते देखा जाता है, इसलिए विनय के भेद करते समय कहा गया- अर्थ विनय भी है, काम विनय भी है, भय विनय भी है। अर्थ की प्राप्ति हेतु एक पुत्र अपने पिता का, एक बहू अपनी सास का, एक नौकर अपने स्वामी का, एक सामान्य सा क्लर्क अपने अधिकारी का विनय करते देखा जाता है। यह विनय स्वार्थ से है। कामना के वशीभूत होकर भी व्यक्ति को विनय करते हुए देखा जाता है। गुण लेने हैं, कलाएँ सीखनी हैं, सामने वाले की सम्पदा को लेना है, ऐसी स्थिति में नम्रता एवं विनय करने वाला झुकता है,आदर सम्मान देता है। कभी भय से भी विनय किया जाता है। गलती हो गई, कुछ खो गया, नुकसान हो गया, ऐसी स्थिति में भय के मारे विनय करने वाले भी होते हैं। ये अर्थ, काम, भयादि विनय स्वार्थ के वशीभत किए जाते हैं। यहाँ इस प्रकार के विनय का वर्णन नहीं किया जा रहा है। यहाँ जिस 'विनय' का वर्णन किया जा रहा है वह अहंकार को गलाने वाला है। विनय : समस्त गणों का मूल
अहंकार, माया आदि से रहित विनय धर्म का मूल है। वह विनय आभ्यन्तर तप है। प्रभु महावीर कह रहे हैं— मैं संयोगमुक्त भिक्षाजीवी अणगार का विनय गुण प्रकट करूँगा। इसलिए करूँगा कि यह विनय जिसके जीवन में है, उसके गुण विकसित होते हैं, शोभित होते हैं। इसलिए अन्यत्र भी कहा गया है
नभोभूषा पूषा कमलवनभूषा मधुकरो, वचोभूषा सत्यं वरविभवभूषा वितरणं। मनोभूषा मैत्री मधुसमयभूषा मनसिजः,
सदो भूषा सूक्तिः सकलगुणभूषा च विनयः ।। विनय सभी गुणों का भूषण है। जैसे आकाश का भूषण सूर्य है, कमलवन का भूषण भ्रमर है, वाणी का भूषण सत्य है, वैभव का भूषण दान है, मन का भूषण मित्रता है, सज्जन का भूषण उसका सुभाषित वचन है, इसी तरह सब गुणों का भूषण विनय है।
__शास्त्र का कथन है-- विनयी मधुरभाषी। विनयशील व्यक्ति कुछ नहीं देकर भी प्रेम और विश्वास अर्जित कर लेता है और विशिष्ट पदार्थों को देकर भी विनयहीन व्यक्ति प्रेम तोड़ देता है। राबड़ी खिलाकर भी 'फूल और
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