________________
उत्तराध्ययन सूत्र में विनय का विवेचन
o आचार्यप्रवर श्री हीराचन्द्र जी म.सा.
उत्तराध्ययनसूत्र की महत्ता निर्विवाद है। इसके ३६ अध्ययनों में तत्त्वमीमांसा, आचारमीमांसा एवं ज्ञानमीमांसा का विवेचन प्राप्त है। यह श्रमण एवं श्रमणोपासक दोनों वर्गो में लोकप्रिय है। अर्धमागधी प्राकृत सूत्रों में उत्तराध्ययनसूत्र ही ऐसा है, जिससे संक्षेप में सरलतया आवश्यक बोध हो जाता है । रत्नवंश के अष्टम पट्टधर आचार्यप्रवर श्री हीराचन्द्र जी म. सा. उत्तराध्ययन सूत्र को आधार बनाकर कई बार प्रवचन फरमाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के विनय अध्ययन को लेकर भी उन्होंने कई प्रवचन दिए हैं। उन्हीं प्रवचनों में से कुछ अंश यहाँ उनके प्रवचनों की पुस्तक 'हीरा प्रवचन- पीयूष भाग -१' से संकलित कर प्रकाशित किया जा रहा है। -सम्पादक
तीर्थकर भगवान महावीर की अन्तिम अनमोल वाणी 'उत्तराध्ययनसूत्र' का चातुर्मासिक चतुर्दशी के दिन प्रारम्भ किया था, दो दिन की असज्झाय हो जाने से शास्त्र वाचना नहीं करके चातुर्मास में करणीय विशेष कर्त्तव्यों का बोध हो, इस दृष्टि से कल रात्रि भोजन त्याग की बात सामने रखी गई, आज तीर्थंकर भगवान् महावीर प्रभु की उस अन्तिम वाणी पर विचार किया जा रहा है।
'उत्तर' शब्द के तीन अर्थ
सूत्र का नाम है- उत्तराध्ययन। इसके उत्तर और अध्ययन दो विभाग होते हैं। आचार्य भगवन्तों ने उत्तर शब्द के तीन अर्थ प्रमुखता से किए हैं। एक उत्तर 'पश्चात्' अर्थ में प्रयुक्त होता है । यथा- • पूर्वपक्ष, उत्तरपक्ष । पूर्व कथन, उत्तर कथन । अर्थात् किसी सूत्र के बाद कहा जाने वाला सूत्र है उत्तराध्ययन। दूसरा अर्थ है- उत्तर यानी समाधान । प्रश्न और उसका उत्तर, जिसे आप शंका और समाधान के नाम से भी कह सकते हैं। भव-भ्रमण की समस्याओं का समाधान करने के साथ, आत्म-स्वभाव, आत्मचिन्तन, आत्मजागरण और आत्मा-परमात्मा के विषय में किन-किन समस्याओं का किन-किन साधनाओं से किस क्रम में समाधान करना, उत्तराध्ययन सूत्र इसका कथन करता है। 'उत्तर' शब्द का तीसरा अर्थ है- प्रधान, श्रेष्ठ, उत्तम । भगवान महावीर प्रभु की अन्तिम समय में सारभूत, उत्तम, श्रेष्ठ वाणी होने से इस सूत्र को उत्तराध्ययन सूत्र कहा जा रहा है। पश्चात् कहने के अर्थ में यह सूत्र दशवैकालिक के बाद पढ़ा जाता है। आचार्य शय्यंभव द्वारा मनक मुनि हेतु पूर्वो से सार निकालकर दशवैकालिक सूत्र की रचना की गई। उसके बाद इस सूत्र का वाचन, पठन या व्याख्यान किया जाता है। इसलिये नाम की तरह अर्थ का साम्य भी बैठता है ।
टीकाकार स्वयं जिज्ञासा करते हैं- उत्तराध्ययन सूत्र उत्तम सूत्र है, श्रेष्ठ और प्रधान सूत्र है । उत्तराध्ययन सूत्र को श्रेष्ठ, उत्तम, प्रधान व सारभूत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org