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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
अनासक्त होना चाहिए। आत्म-साधना करने वाले (चित्र) मुनि चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त (संभूत) को कहते हैं।
सव्व सुचिणं सफलं नराणं । 113.10 ।। मनुष्य के सभी सुचरित (सत्कर्म) सफल होते हैं। सव्वे कामां दुहावहा । 113.16 ।।
सभी कामभोग दुःखावह (दुःखद) होते हैं।
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कत्तारमेव अणुजाइ कम्मा । । 13.23 ।।
कर्म सदा कर्ता के पीछे-पीछे अर्थात् साथ-साथ चलते हैं। वण्णं जरा हरइ नरस्स रायं । । 13.26 ।।
जरा मनुष्य की सुन्दरता को समाप्त कर देती है। उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति
दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ।।13.31 ।।
वृक्ष के फल क्षीण हो जाने पर पक्षी उसे छोड़कर चले जाते हैं वैसे ही पुरुष का पुण्य क्षीण होने पर भोग-साधन उसे छोड़ देते हैं।
यह अध्ययन निदान रहित तपस्या और साधना का उपदेश देता है। 6. त्याग ही मुक्ति का मार्ग है ( उसुयारिज्जं - चौदहवाँ अध्ययन )
इस अध्ययन में मनुष्य को बन्धनों, कष्टों, दुःखों, पीड़ाओं से मुक्ति पाने हेतु समाधान किया गया है। इस अध्ययन के पढ़ने से स्पष्ट होता है कि भोग, प्रपंच, रूढियाँ, अन्य विश्वास और मान्यताएँ सभी संसार के कारण हैं । मुक्ति प्राप्त करने के लिए इन सबका त्याग आवश्यक है। त्यागमार्गको छः व्यक्तियों ने अपनाया और मुक्त हुए ।
पुरोहित पुत्र अपने पिता भृगु पुरोहित से संसार त्याग कर दीक्षा ग्रहण करने की आज्ञा मांगते हैं तो पिता पुत्र के प्रति मोह के कारण बहुत से तर्क देता है और इसके साथ भोगों का निमन्त्रण भी । तब पुत्र कहता हैअज्जेव धम्मं पडिवज्जयामो, जहिं पवन्ना न पुणभवामो । अणायं नेव य अत्थि किंचि, सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं । 114.28 । ।
संसार में ऐसी कोई भी वस्तुएं नहीं हैं, जो इस आत्मा को पहले प्राप्त नहीं हुई हों। इसलिए हम आज से ही इस साधु धर्म को अन्तःकरण से स्वीकार करें जिससे कि फिर जन्म नहीं लेना पड़े। राग को त्याग कर श्रद्धा से साधु धर्म की पालना श्रेष्ठ है । धर्म श्रद्धा हमें राग से (आसक्ति) मुक्त कर सकती है।
7. संयति राजर्षि का इतिहास (संजइज्जं - अठारहवाँ अध्ययन)
इस अध्ययन में गर्दभालि ऋषि से प्रेरित होकर संयति राजर्षि द्वारा शिकार छोड़कर संयम धारण करने का वर्णन है । संयति मुनि से क्षत्रिय राजर्षि ने उनके ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की थाह लेने के लिए अनेक प्रश्न किए। संयति मुनि ने क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद एवं अज्ञानवाद के संदर्भ में जानकारी देने के साथ ज्ञान-क्रियावाद का समन्वय स्थापित किया। संयति
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