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| उत्तराध्ययन सूत्र
३(चतुरंगीय) ४(असंस्कृत), ५(अकाममरण), ६(क्षुल्लक-निर्ग्रन्थीय), ७(एलय), ८(कापिलीय), १०(द्रुम पत्रक), ११(बहुश्रुत पूजा), १६(ब्रह्मचर्य समाधिस्थान का पद्य भाग), १७(पापश्रमणीय),
३२(प्रमादस्थानीय) और ३५(अनगार) 3. आख्यानात्मक अध्ययन- ९(नमिप्रव्रज्या), १२(हरिकेशीय),
१३(चित्तसंभूतीय), १४(इषुकारीय), १८(संजय-संयतीय), १९(मृगापुत्रीय), २०(महानिर्ग्रन्थीय), २१ (समुद्रपालीय), २२(रथनेमीय), २३(केशीगौतमीय) और २५(यज्ञीय)
उत्तराध्ययन सूत्र पूर्ण रूप से अध्यात्म शास्त्र है। दार्शनिक सिद्धान्तों के साथ इसमें बहुत से आख्यानों का संकलन है। इसमें साध्वाचार, उपदेशनीति, सदाचार, उस समय की प्रचलित सामाजिक, राजनैतिक परम्पराओं का समावेश है। भारतवर्ष में प्रचलित दूसरी परम्पराएँ भी इससे प्रभावित हुई हैं। उदाहरणार्थ- वैदिक परम्परा, महाभारत, गीता, मनुस्मृति आदि और बौद्ध धर्म के धम्मपद, सुत्तनिपात आदि ग्रन्थों पर भी स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। इसलिए उत्तराध्ययन सूत्र में वर्णित भाव अन्य परम्पराओं के ग्रन्थों से मिलते हैं। ध्यानपूर्वक पढ़ने से पता चलता है कि कहीं-कहीं तो शब्द भी एक से मिल जाते हैं। उनमें बहुत सी गाथा और पद भी ज्यों के त्यों मिल जाते हैं। उदाहरणार्थउत्तराध्ययन में
जैनेतर ग्रन्थों में १. अध्ययन १३/२२
महाभारत शान्ति पर्व १७५/१८,१९ जहेह सीहो व मियं गहाय
तं पुत्रपशुसंपन्न, व्यासक्तमनसं नरं। मच्चू नरं नेइ हु अंतकाले।
सुप्तं व्याघ्रो मृगमिव, मृत्युरादाय गच्छति।। न तस्स माया व पिया व भाया सचिन्वानकमेवैनं, कामानामवितृप्तक।
कालम्मि तम्मिंसहरा भवंति।। व्याघ्रः पशुमिवादाय, मृत्युरादाय गच्छति।। २.अध्ययन २०/३५
धम्मपद १२/१४ तत्तोऽहं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य। अत्ता हि अत्तनो नाथो, को हि नाथो परो
सिया। ३. अध्ययन २०/३७
गीता ६/५ अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठिय सुप्पट्टिओ।। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।। ४. अध्ययन १/१४
शान्तिपर्व २८७/३५ ५.अध्ययन १/१५
धम्मपद १२/१३ ६. अध्ययन २/१०
धम्मपद गाथा ३४,२४७,६८६ ७. अध्ययन ३/१७
सूत्र व. ८.१/४ ८. अध्ययन ९/४०
शान्ति पर्व १९८/५ ९.अध्ययन ९/४९
अनुशासन पर्व ९३/४०
विष्णुपुराण ४/१०/१० १० अध्ययन २५/२९
धम्मपद १९/९ ११ अध्ययन ३२/१००
गीता २६४
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