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हिनश्यावलिका आदि सूत्रत्रय
श्री धर्मचन्द जैन अपने पापकर्मों के कारण नरक में जाने वाले जीवों का वर्णन निरयावलिका में किया गया है। इसमें ५ उपांग हैं, जिनमें से प्रथम ३ कल्पिका (निरयावलिया), कल्पावतंसिका एवं पुष्पिका का परिचय इस आलेख में आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड के रजिस्ट्रार एवं तत्त्वज्ञ श्री धर्मचन्द जी द्वारा दिया गया है।
-सम्पादक
जैन धर्म में आगम अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य के भेद से दो प्रकार के हैं। तीर्थकरों से अर्थ रूप उपदेश सुनकर गणधर जिन्हें सूत्र रूप में ग्रथित करते हैं, उन्हें अंगप्रविष्ट आगम कहते हैं। भगवान के उपदेश के आधार पर बाद के आचार्यों ने जिन आगमों की रचना की, उन्हें अंगबाह्य आगम कहते हैं। सभी उपांग अंग बाह्य कहलाते हैं। उनमें एक उपांग है- निरयावलिका सूत्र। नाम
इस आगम में नरक में जाने वाले जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन होने से इसे 'निरयावलिका' कहते हैं। इसमें पाँच उपांग समाविष्ट हैं१. निरयावलिका अथवा कल्पिका २. कल्पावतंसिका ३. पुष्पिका ४. पुष्पचूलिका और ५. वृष्णिदशा परिचय
निरयावलिका सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध, बावन अध्ययन, पाँच वर्ग और ११०० श्लोक प्रमाण मूल पाठ है। इसके प्रथम वर्ग में दस अध्ययनों में काल, सुकाल, महाकाल, कृष्ण, सृकृष्ण, महाकृष्ण, वीरकृष्ण, रामकृष्ण, पितृसेनकृष्ण और महासेनकृष्ण का जीवन चरित्र वर्णित है।
निरयावलिका (कल्पिका) प्रथम वर्ग में मगध देश के सम्राट श्रेणिक के दस पुत्रों का नरक में जाने का वर्णन किया गया है। श्रेणिक की महारानी चेलना से कूणिक का जन्म हुआ। कूणिक राज्य लिप्सा का इच्छुक बनकर अपने लघु भ्राता काल, सुकाल कुमार आदि के सहयोग से अपने पिता को बन्दीगृह में डाल देता है तथा स्वयं राजा बनकर जब माता के चरण वन्दन को जाता है तो माता मुँह फेर लेती है तथा कणिक से कहती है कि तुम्हारे पिता तुम्हें कितना अधिक चाहते थे। गर्भ अवस्था के दोहद की घटना तथा उत्पन्न होने के बाद उकरड़ी में फैंकने, मुर्गे द्वारा अंगुली नौंच देना, मवाद निकलना, मवाद को मुँह में चूसते-चूसते बाहर निकालना, तुम्हें सुख उपजाना आदि की सारी घटना विस्तार से बतलाती है। घटना सुनकर कूणिक अपने पिता के बन्धन काटने हेतु कुल्हाड़ी हाथ में लिये कारागृह की ओर जाता है, किन्तु उसके पिता श्रेणिक सोचते हैं कि अब यह मुझे न जाने किस तरह तड़फा-तडफा कर
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