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________________ | 278 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक का हिंदी अनुवाद, श्री घासीलाल जी म.सा. कृत संस्कृत में विस्तृत टीका तथा उसका हिन्दी व गुजराती अनुवाद तथा युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी म. सा. के प्रधान सम्पादन में आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर से निकला हिन्दी संस्करण आदि हैं। प्रज्ञापना सूत्र की अन्य सूत्रों में भलामण या अतिदेश आगम लेखनकाल में देविर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने अनेक आगमों में आये हुए कई मिलते जुलते पाठों को एक आगम में रखकर अन्य आगम में 'जाव' आदि शब्दों से संक्षेप कर उस आगम में देखने का संकेत किया है, जिससे समान पाठ बार-बार न लिखना पड़े तथा आगमों का कलेवर छोटा रहे। अनेक आगमों में पाठों को संक्षिप्त कर प्रज्ञापना से देखने का भी अतिदेश किया गया है। समवायांग सूत्र के जीव-अजीव राशि विभाग में प्रज्ञापना के १,६,१७,२१,२८,३३,३५ पद देखने की भलामण दी है। इसी तरह भगवती सूत्र में प्रज्ञापना सूत्र के १,२,३,४,५,६,७,८,९, १०,११,१२,१३,१४,१५,१६,१७,१८,१९,२०,२१,२२,२३,२४,२५, २६,२८,२९,३०,३२,३३,३४,३५,३६ इन पदों से विषय पूर्ति कर लेने का संकेत किया गया है। जीवाभिगम सूत्र में प्रथम प्रज्ञापना, दूसरे स्थानपद, चौथा स्थिति, छठा व्युत्क्रांति तथा अठारहवें कायस्थिति पद की अनेक जगह भलामण है। विषयवस्तु , प्रज्ञापना सूत्र प्रधानतया द्रव्यानुयोगमय है। कुछ गणितानुयोग व प्रसंगोपात्त इतिहास आदि के विषय इसमें सम्मिलित हैं। जीवादि द्रव्यों का इसमें सविस्तार विवेचन है। वृत्तिकार मलयगिरि पदों के विषय का विभाजन ७ तत्त्वों में इस प्रकार से करते है१-२ जीव अजीव तत्व -१,३,५,१०,१३ वाँ पद ३ आनव -१६ व २२वाँ पद। ४. बंध -२३ वाँ पद ५-७ संवर, निर्जरा और मोक्ष -३६ वां पद . बाकी के पदों में कहीं किसी तत्त्व का, कहीं किसी का निरूपण है। आचार्य मलयगिरि ने द्रव्यादि चार पदों में भी इन पदों का विभाजन किया हैंद्रव्य का - प्रथम पद में क्षेत्र का - द्वितीय पद में काल का - चौथे पद में भाव का - शेष पदों में द्रव्यानुयोगप्रधान स्थानांग, भगवती, जीवाभिगम आदि सूत्रों के अनेक विषय इससे मिलते जुलते हैं। भगवती सूत्र में तो लगभग पूरा प्रज्ञापना - mo 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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