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|जीवाजीवाभिगम सूत्र
265 __ पंचेन्द्रिय तिर्यक् योनिक तीन प्रकार के हैं- १. जलचर २. स्थलचर ३. खेचर।
परिसर्प स्थलचर के दो भेद बताये गये है- १. उरपरिसर्प २. भुजपरिसर्प।
मनुष्य के दो प्रकार कहे गये हैं-- १. सम्मूर्छिम मनुष्य २. गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य। सम्मूर्छिम मनुष्य १४ अशुचि स्थानों पर पैदा होते हैं। गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के कहे गये है- १. कर्मभूमिक २. अकर्मभूमिक
और ३. अन्तर्वीपज। देव चार प्रकार के कहे गये हैं- १. भवनवासी २.. वाणव्यन्तर ३. ज्योतिष्क ४. वैमानिक। चतुर्थ प्रतिपत्ति
- चतुर्थ परिपति में जीव पाँच प्रकार के कहे गये हैं- १. एकेन्द्रिय २. द्वीन्द्रिय ३. त्रीन्द्रिय ४. चतुरिन्द्रिय ५. पंचेन्द्रिय। पंचम प्रतिपत्ति
पंचम प्रतिपत्ति में संसार समापन्नक जीव छह प्रकार के कहे गये हैं१. पृथ्वीकायिक २. अप्कायिक ३. तेजस्कायिक ४. वायुकायिक ५ वनस्पतिकायिक ६. त्रसकायिक षष्ठ प्रतिपत्ति
षष्ठ प्रतिपत्ति में संसार-समापन्नक जीव सात प्रकार के हैं- १. नैरयिक २. तिथंच ३. तिरश्ची (तिर्यक् स्त्री) ४. मनुष्य ५. मानुषी ६. देव ७.
देवी।
सानि
सप्तम प्रतिपत्ति
सप्तम प्रतिपत्ति में संसार-समापन्नक जीवों के आठ प्रकार कहे गये हैं। उनके अनुसार ये आठ प्रकार इस तरह हैं१. प्रथम समय नैरयिक २. अप्रथम समय नैरयिक ३. प्रथम समय तिर्यक् योनिक ४. अप्रथम समय तिर्यक्योनिक ५. प्रथम समय मनुष्य ६. अप्रथम समय मनुष्य ७. प्रथम समय देव ८. अप्रथम समय देव। अष्टम प्रतिपत्ति
अष्टम प्रतिपत्ति में संसार समापन्नक जीवों के नौ भेद कहे गये हैं१. पृथ्वीकायिक २. अपकायिक ३. तेजस्कायिक ४. वायुकायिक ५. वनस्पतिकायिक ६. द्वीन्द्रिय ७. त्रीन्द्रिय ८. चतुरिन्द्रिय ९. पंचेन्द्रिय। नवम प्रतिपत्ति
नवम प्रतिपत्ति में संसार-समापन्न जीवों के दस प्रकार कहे गये हैं१. प्रथम समय एकेन्द्रिय २. अप्रथम समय एकेन्द्रिय ३. प्रथम समय द्वीन्द्रिय ४. अप्रथम समय द्वीन्द्रिय ५. प्रथम समय त्रीन्द्रिय ६. अप्रथम समय त्रीन्द्रिय ७. प्रथम समय चतुरिन्द्रिय ८. अप्रथम समय चतुरिन्द्रिय ९. प्रथम समय पंचेन्द्रिय १०. अप्रथम समय पंचेन्द्रिय।
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