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जिनवाणी
मंगल-मूल धर्म की जननी, शाश्वत, सुखदा, कल्याणी। द्रोह, मोह, छल, मान-मर्दिनी, फिर प्रगटी यह 'जिनवाणी' ।।
भगवान महावीर के 2800वें जन्म-कल्याणक महोत्सव के अवसर पर प्रकाशित
नावण साहित्य विशेषाङ्क
परस्परोपग्रहो जीवानाम्
सम्पादक डॉ. धर्मचन्द जैन
● प्रकाशक . सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल बापू बाजार, जयपुर
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