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ज्ञाताधर्मकथा की सांस्कृतिक विरासत
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ग्रन्थ में पहली बार श्रीकृष्ण के नरसिंहरूप का वर्णन है, जबकि वैदिक ग्रन्थों में विष्णु का नरसिंहावतार प्रचलित है। समाज सेवा और पर्यावरण संरक्षण
इस ग्रन्थ के धार्मिक वातावरण में भी समाज सेवा और पर्यावरणसरंक्षण के प्रति सम्पन्न परिवारों का रुझान देखने को मिलता है। राजगृह के निवासी नन्द मणिकार द्वारा एक ऐसी वापी का निर्माण कराया गया था जो समाज के सामान्य वर्ग के लिए सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराती थी। वर्तमान युग में जैसे सम्पन्न लोग शहर से दूर वाडी का निर्माण कराते हैं उसी की यह पुष्करणी वापिका थी । उसके चारों ओर मनोरंजन पार्क थे। उनमें विभिन्न कलादीर्घाएं और मनोरंजन शालाएं थी। राहगीरों और रोगियों के लिए चिकित्सा केन्द्र भी थे ।" इस प्रकार का विवरण भले ही धार्मिक दृष्टि से आसक्ति का कारण रहा हो, किन्तु समाज सेवा और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरणा था ।
ज्ञाताधर्मकथा में प्राप्त इस प्रकार के सांस्कृतिक विवरण तत्कालीन उन्नत समाज के परिचायक हैं । इनसे विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोगों का भी पता चलता है। चिकित्सा के क्षेत्र में सोलह प्रमुख महारोगों और उनकी चिकित्सा के विवरण आयुर्वेद के क्षेत्र में नई जानकारी देते हैं । कुछ ऐसे प्रसंग भी हैं जहाँ इस प्रकार के तेलों के निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन है जो सैंकड़ों जड़ी बूटियों के प्रयोग से निर्मित होते थे । उनमें हजारों स्वर्णमुद्राएँ खर्च होती थीं। ऐसे शतपाक एवं सहस्रपाक तेलों का उल्लेख इस ग्रन्थ में है । इसी ग्रन्थ के बारहवें अध्ययन में जलशुद्धि की प्रक्रिया का भी वर्णन उपलब्ध है जिससे गटर के अशुद्ध जल को साफ कर शुद्ध जल में परिवर्तित किया जा सकता है।" यह प्रयोग इस बात का भी प्रतीक है कि संसार में कोई वस्तु या व्यक्ति सर्वथा अशुभ नहीं है, घृणा का पात्र नहीं है। व्यापार एवं भूगोल
प्राचीन भारत में व्यापार एवं वाणिज्य उन्नत अवस्था में थे । देशी एवं विदेशी दोनों प्रकार के व्यापारों में साहसी वणिक् पुत्र उत्साहपूर्वक अपना योगदान करते थे। ज्ञाताधर्मकथा में इस प्रकार के अनेक प्रसंग वर्णित हैं। समुद्रयात्रा द्वारा व्यापार करना उस समय प्रतिष्ठा समझी जाती थी । सम्पन्न व्यापारी अपने साथ पूंजी देकर उन निर्धन व्यापारियों को भी साथ में ले जाते थे, जो व्यापार में कुशल होते थे । समुद्रयात्रा के प्रसंग में पोतपट्टन और जलपत्तन जैसे बन्दरगाहों का प्रयोग होता था । व्यापार के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ जहाज में भरकर व्यापारी ले जाते थे और विदेश से रत्न कमाकर लाते थे। अश्वों का व्यापार होता था। इस प्रसंग में अश्व विद्या की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
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