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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क नामकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों का बन्धक, नारकी जीव भी अट्ठाईस प्रकृतियों का बन्धक (देवों के शुभ प्रकृतियाँ तथा नारकी में अशुभ प्रकृतियां बधती हैं) नारकी व देवों की अट्ठाईस पल्योपम और अट्ठाईस सागरोपम की स्थिति उल्लेख किया गया है।
उनतीसवाँ समवाय
इसमें उनतीस पाप श्रुत, आसाढ़ मास आदि के उनतीस रात-दिन, सम्यग्दृष्टि, सम्यग्दृष्टि भव्यजीव द्वारा तीर्थकर नाम सहित उनतीस प्रकृतियों का बन्ध, नारक देवों के उनतीस पल्योपम और उनतीस सागरोपम की स्थिति का वर्णन है।
तीसवाँ समवाय
इसमें महामोहनीय कर्म बन्धने के तीस स्थान, मण्डित पुत्र स्थविर की तीस वर्ष की दीक्षा पर्याय, दिन-रात के तीस मुहूर्त, अठारहवें तीर्थंकर अरनाथ जी की तीस धनुष की ऊँचाई, सहस्रार देवेन्द्र के तीस हजार सामानिक देव, भगवान पार्श्वनाथ व महावीर स्वामी का तीस वर्ष तक गृहवास में रहना, रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावास, नारक देवों की तीस पल्योपम और तीस सागरोपम की स्थिति का उल्लेख मिलता है।
इकतीसवाँ समवाय
इसमें सिद्ध पर्याय प्राप्त करने के प्रथम समय में होने वाले इकतीस गुण (आठ कर्मों की इकतीस प्रकृतियों के क्षय से प्राप्त होने वाले गुण), मन्दर पर्वत धरती तल पर परिधि की अपेक्षा कुछ कम इकतीस हजार छ सौ तेईस योजन वाला, सूर्यमास, अभिवर्धित मास में इकतीस रात-दिन, नारकी देवों की इकतीस पल्योपम तथा इकतीस सागरोपम की स्थिति बतलाने के साथ ही भवसिद्धिक कितने ही जीवों के इकतीस भव ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त करने का उल्लेख किया गया है।
बत्तीसवें से चौतीसवाँ समवाय
बत्तीसवें समवाय में बत्तीस योग संग्रह, बत्तीस देवेन्द्र, कुन्थुनाथ जी के बत्तीस सौ बत्तीस (३२३२) केवली, सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमान, रेवती नक्षत्र के बत्तीस तारे, बत्तीस प्रकार की नाट्य विधि तथा नारक देवों की बत्तीस पल्योपम व बत्तीस सागरोपम की स्थिति का वर्णन किया गया है।
तैंतीसवें समवाय में तैंतीस आशातनाएँ, असुरेन्द्र की राजधानी में तैंतीस मंजिल के विशिष्ट भवन तथा नारक देवों की तैंतीस पल्योपम तथा सागरोपम की स्थिति बतलाई गई है।
चौंतीसवें समवाय में तीर्थंकरों के चौंतीस अतिशय, चक्रवर्ती के चौंतीस विजयक्षेत्र, जम्बूद्वीप में उत्कृष्ट चौंतीस तीर्थंकर उत्पन्न होना, असुरेन्द्र के चौंतीस लाख भवनावास तथा पहली, पांचवी, छठी और सातवीं नरक में चौंतीस लाख नरकावास बतलाये हैं।
पैंतीसवें से साठवाँ समवाय
पैंतीसवें समवाय में वाणी के पैंतीस अतिशय आदि, छत्तीसवें में
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