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समवायांग सूत्र एक परिचय
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इसमें बाईस परीषह, दृष्टिवाद के बाईस सूत्र, पुद्गल के बाईस प्रकार तथा कुछ नारकों - देवों की बाईस पल्योपम व बाईस सागरोपम की स्थिति का वर्णन किया गया है।
तेईसवाँ समवाय
इसमें सूत्रकृतांग सूत्र के २३ अध्ययन कहे गये हैं। इस समवाय के अनुसार जम्बूद्वीप के तेईस तीर्थकरों को सूर्योदय के समय केवलज्ञान उत्पन्न हुआ, भगवान् ऋषभदेव को छोड़कर तेईस तीर्थकर पूर्वभव में ग्यारह अंगों के ज्ञाता थे, (ऋषभ का जीव चौदह पूर्वो का ज्ञाता था) तेईस तीर्थकर पूर्वभव में माण्डलिक राजा थे (ऋषभ चक्रवर्ती थे), कुछ नारकों और देवों की तेईस पल्योपम व सागरोपम की स्थिति का उल्लेख किया गया है।
चौबीसवाँ समवाय
इसमें चौबीस तीर्थकरों के नामों का उल्लेख हुआ है । चुल्लहिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वतों की जीवाएँ चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस योजन की कही गई हैं। चौबीस अहमिन्द्र, चौबीस अंगुल वाली उत्तरायणगत सूर्य की पौरुषी छाया, गंगा-सिन्धु महानदियों के उद्गम स्थल पर चौबीस कोस का विस्तार तथा कतिपय नारक देवों की चौबीस पल्योपम व चौबीस सागरोपम की स्थिति का उल्लेख किया गया है।
पच्चीसवाँ समवाय
इसमें पाँच महाव्रतों को निर्मल एवं स्थिर रखने वाली पच्चीस भावनाएँ, मल्ली भगवती की ऊँचाई पच्चीस धनुष, वैताढ्य पर्वत की ऊँचाई पच्चीस योजन और भूमि में गहराई पच्चीस कोस, दूसरे नरक के पच्चीस लाख नरकावास, आचारांग सूत्र के पच्चीस अध्ययन, अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रियों के बन्धने वाली नामकर्म की २५ उत्तर प्रकृतियाँ तथा पच्चीस सागरोपम की स्थिति वर्णित है। छब्बीसवाँ समवाय
इसमें दशाश्रुतस्कन्ध, कल्पसूत्र और व्यवहार सूत्र के छब्बीस उद्देशन काल, अभवी जीवों के मोहनीय कर्म की छब्बीस प्रकृतियाँ (मिश्र मोह व सम्यक्त्व मोह को छोड़कर) नारकी व देवों की छब्बीस पल्योपम और छब्बीस सागरोपम की स्थिति का वर्णन उपलब्ध है।
सत्ताईसवाँ समवाय
इस समवाय में साधु के सत्ताईस गुण, नक्षत्र मास के सत्ताईस दिन, वेदक सम्यक्त्व के बन्ध-रहित जीव के मोहनीय कर्म की सत्ताईस प्रकृतियों की सत्ता, श्रावक शुक्ला सप्तमी के दिन सत्ताईस अंगुल की पौरुषी छाया तथा किन्हीं नारक देवों की सत्ताईस पल्योपम और सत्ताईस सागरोपम की स्थिति का कथन किया गया है।
अट्ठाईसवाँ समवाय
इस समवाय में आचार प्रकल्प के अट्ठाईस प्रकार, भवसिद्धिक जीवों में मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियाँ, आभिनिबोधक ज्ञान ( मतिज्ञान) के अट्ठाईस प्रकार, ईशान कल्प में अट्ठाईस लाख विमान, देव गति बांधने वाला जीव
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