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पाँचवाँ समवाय
पाँचवें समवाय में पांच क्रिया, पांच महाव्रत, पांच कामगुण, पांच आस्रवद्वार, पांच तारे, नारक देवों की पांच पल्योपम व पांच सागरोपम की स्थिति का वर्णन करने के साथ ही पांच भव करके मोक्ष में जाने वाले भवसिद्धिक जीवों का भी उल्लेख किया गया है।
जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
छठा समवाय
छठे समवाय में छह लेश्या, छ: जीवनिकाय, छह बाह्य तप, छह आभ्यन्तर तप, छह छद्मस्थों के समुद्घात, छह अर्थावग्रह, छह तारे, नारक देवों की छह पल्योपम तथा छह सागरोपम की स्थिति वालों का वर्णन करके छह भव ग्रहण कर मुक्त होने वाले भवसिद्धिक जीवों का कथन किया गया है।
सातवाँ समवाय
सातवें समवाय में सात प्रकार के भय, सात प्रकार के समुद्घात, भगवान महावीर का सात हाथ ऊँचा शरीर, जम्बूद्वीप में सात वर्षधर पर्वत, सात द्वीप, बारहवें गुणस्थान में सात कर्मों का वेदन, सात तारे व सात नक्षत्र बताये गये हैं । नारक और देवों की सात पल्योपम की तथा सात सागरोपम की स्थिति का भी उल्लेख किया गया है तथा सात भव ग्रहण करके मुक्ति में जाने वाले जीवों का भी वर्णन है।
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आठवाँ समवाय
आठवें समवाय में आठ मदस्थान, आठ प्रवचन माता, वाणव्यन्तर देवों के आठ योजन ऊँचे चैत्य वृक्ष आदि, केवली समुद्घात के आठ समय, भगवान पार्श्वनाथ के आठ गणधर, चन्द्रमा के आठ नक्षत्र, नारक देवों की आठ पल्योपम व आठ सागरोपम की स्थिति का कथन करने के साथ ही आठ भव करके मोक्ष जाने वाले भवसिद्धिक जीवों का वर्णन भी किया गया है।
नौवाँ समवाय
नवम समवाय नव ब्रह्मचर्य की गुप्ति रूप वाड़, नव ब्रह्मचर्य के अध्ययन, भगवान पार्श्वनाथ के शरीर की नौ हाथ की ऊँचाई, वाणव्यन्तर देवों की सभा नौ योजन की ऊँची, दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियां, नारक देवों की नौ पल्योपम और नौ सागरोपम की स्थिति तथा नौ भव करके मोक्ष जाने वाले भवसिद्धिक जीवों का वर्णन है।
दसवाँ समवाय
दसवें समवाय में श्रमण के दस धर्म, चित्त-समाधि के दस स्थान, सुमेरु पर्वत की मूल में दस हजार योजन चौड़ाई, भगवान अरिष्टनेमी, कृष्ण-वासुदेव, बलदेव की दस धनुष की ऊँचाई, ज्ञानवृद्धिकारक दस नक्षत्र, दस कल्पवृक्ष, नारक देवों की दस हजार वर्ष दस पल्योपम व दस सागरोपम की स्थिति का वर्णन करने के साथ ही दस भव ग्रहण करके मोक्ष में जाने वाले भवसिद्धिक जीवों का भी कथन किया गया है।
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ग्यारहवाँ समवाय
ग्यारहवें समवाय में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ, भगवान महावीर के
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